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________________ विशेष जरूरत है। मैं जानता हूँ कि समय बहुत ज्यादा हो चुका है। लोग ऊँचे नीचे होने लगे हैं। बार बार जेबों में से घडियाँ निकालकर देखी जा रही हैं । मगर इन घड़ियों की अपेक्षा अपने जीवन की घड़ी देखोगे तो मालूम होगा कि, कितना समय हो गया है और कितना बाकी है। भाग्योदय से यह शुभ प्रसंग हाथ आया है। इसे स्थिर चित्त से सफल कर लेना चाहिए । जैसे सांसारिक कार्यों की चिन्ता रहती है वैसे ही बल्कि उससे भी अधिक धार्मिक कार्यों की चिन्ता रखनी चाहिए। जब तुम अपने बाप दादों की द्रव्यरुपी पूँजी के मालिक बने हो उसका बराबर हिसाब रखते हो और उसे बढ़ाने की चिन्ता करते हो, तब उन्हीं बाप दादों की धार्मिक पूँजी को तुम लापरवाही से क्षीण होने देते हो यह कितने दुःख की बात है। संसार की नश्वर पूंजी के लिये जितनी मेहनत की जाती है, जितना प्रयत्न किया जाता है, उतना ही यदि परमार्थ की धार्मिक पूँजी के लिए जो आत्मा की खास ऋद्धि है प्रयत्न किया जाय तो यह आत्मा अत्यन्त उच्च बन सकती है। हमेशा याद रखना चाहिए कि, दुनिया में सांसारिक उन्नति का मूल कारण धार्मिक उन्नति ही है । मर्यादा के धर्म के आदेशों के अनुसार जो संसार में वर्तता है, वही संसार में उन्नति कर सकता है। कोई बता सकता है कि मर्यादाहीन अनीतिमान मनुष्य ने भी कभी उन्नति की है। कदापि नहीं। आत्मा के गुण जैसे जैसे प्रकट किये जाते है वैसे ही वैसे आत्मिक उन्नति बढ़ती जाती है, जिससे अन्त में मोक्ष मिलता है यहाँ मैं इतना कहूँगा कि, गुण प्रकट करने के लिए अवंलबन की आवश्यकता पड़ती है। इस लिए आत्मिक गुण प्रकट करने की इच्छा रखनेवालों को स्वर्गीय महात्मा के समान महात्मा पुरुषों का आदर्श की तरह अवलम्बन लेना चाहिए। सच्चे अवलंबन का त्याग करने से ही इस दुनिया में आजकल हम कितने पीछे पड़ गये हैं । यह बात विचारणीय है। कई कहते हैं कि, आजकल पंचमकाल है। मैं पूछता हूँ कि पंचमकाल सबके लिए है या जैनों ही के लिए है । जो जैन एक दिन बड़े धनिक थे वे ही जैन आज गरीब व्याकुल दिखाई देते हैं और जो गरीब थे, वे आज धनिक बन गये हैं। इसका कारण क्या है। इसका कारण यही है कि जैन गुणियों या गुणों का आलंबन छोड़, शिक्षाविहीन हो, पुरुषार्थ हीन बन गये हैं। और अपनी निर्बलता वे कलियुग या पंचम काल के बहाने तले छिपाते हैं । पंचम काल में केवलज्ञान आदि अमुक शक्तियाँ ही विकसित नहीं होती है अन्यथा प्रत्येक शक्ति तो मनुष्य अपने पुरुषार्थ के अनुसार विकसित कर सकता है । विचार करोगे तो अंग्रेजी, पारसी आदि लोगों का आदर्श तुम्हें मिल जाएगा। इस लिए पंचम काल के अपंग कारण को आगे कर अपने प्रमाद को उचित बताना श्री आत्मानंद जयंती २१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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