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________________ गौतम स्वामी ने जो विषाद किया था, उसका कारण उनका कोई निजी स्वार्थ न था । वह स्वार्थ रहित और भक्तिगर्भित था । जिसका फल उत्तरोत्तर सारे कर्मों को क्षय करने वाला और मोक्ष दायी हुआ। शास्त्रकारों का कथन है कि अहंकारोपि बोधाय, रागोपि गुरुभक्तये । --- विषादः केवलायाभूत, चित्रं श्रीगौतमप्रभो ॥ सज्जनों ! हमें भी यहाँ इसी प्रकार का शोक प्रदर्शित करना है । जिन महापुरुष के गुण का अनुकरण करके शोक प्रदर्शित किया जाय, उन महापुरुष के गुणों का जरा सा भी अनुकरण न किया जाय तो मैं कहूँगा कि, फोनोग्राफ में और हममें कोई भी अन्तर नहीं है। हाँ फोनोग्राफ जड़ है और हम चेतन हैं, अन्यथा फोनोग्राफ में भरी हुई कोई भी चीज जैसे प्रगट हो जाती है वैसे ही हमारे अन्दर भरी हुई चीज भी मुँह के द्वारा भाषण के रूप में प्रकट हो जाती है मगर उसका अनुसरण करना और उस पर अमल न करने से फोनोग्राफ से जुदा हो, उससे उच्च होने का अभिमान नहीं कर सकते है । इस लिए हमें चाहिए कि हम फोनोग्राफ न बन कर्त्तव्य कर, उससे भिन्न हो, अपनी चैतन्य शक्ति को इसी प्रकार विकसित करें। जिस प्रकार गौतम स्वामी के उदाहरणों में वर्णन की गई है। सज्जनों! हमें अब यह सोचना है कि, हम जिन पूज्य प्रातः स्मरणीय स्वर्गीय श्रीमद्विजयानंद सूरि जयन्ती मनाने के लिए आज एकत्र हुए हैं उनका किस तरह अनुकरण करने से हमारा शोक मनाना सफल है। सच कहा जाय तो जयन्ती का उद्देश्य यही है, केवल बाहरी धूम-धाम करने का नहीं। धूम-धाम तो केवल लोगों के दिलों को आकर्षित करने के लिए की जाती है सभा में से एक भाई ने अफसोस जाहिर किया है कुछ अंशों में उसका ऐसा करना ठीक भी है, तो भी बम्बई की जैनों की बस्ती के प्रमाण में और लालबाग स्थल के प्रमाण में जितने लोग जमा हुए हैं उन्हें देखकर मुझे तो क्या हरेक को प्रसन्नता हुए बिना न रहेगी । मेरा अनुमान है। कि, पर्युषणों के या किसी खास बड़े पर्व के दिन के सिवा कभी इतने मनुष्य शायद ही जमा होते हो । हाँ लड्डू और दूध पाक- पूरी वाले दिन की बात अलग है । महानुभावों ! इस शुभ काम के लिए आपने अमूल्य समय निकाला है यह वास्तव में प्रशंसनीय है । मगर यदि सच कहा जाय तो तुमने जो कुछ किया है या करोगे वह तुम्हारे हित ही लिए है। इसमें तुमने किसी पर अहसान नहीं किया है। अगर इसी तरह थोड़े में से भी थोड़ा श्री आत्मानंद जयंती Jain Education International For Private & Personal Use Only २०९ www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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