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________________ और भी उनके उदाहरण जैन साहित्य में भरे पड़े हुये हैं जहां आसक्ति में रहते हुये भी विरक्ति भाव उत्पन्न होते होते केवलज्ञान प्राप्त हुआ है जैसे (१) रतिसुकुमार को अपनी पत्नी को श्रृंगारते हुये। (२) पृथ्वीचन्द्र को राजसिंहासन पर बैठे बैठे। (३) अरणिक मुनि अनशन लेकर धधकती शीला पर शरीर त्याग कर। (४) गुणसागर को लग्नमंडप में बैठे बैठे हस्तमिलाप के समय। (५) पुण्याठय राजा को अपना खुद का जीवन दर्शन करते करते। (६) अर्जुन माली प्रतिदिन छहसाडो करने के पश्चात् पत्थरों की मार सहते सहते। (७) कुमार्यपुत्र को घर में बैठे बैठे। " (८) कपिल ऋषि को करोड़ सौनय्या की आसक्ति से बोमासा स्वर्ण की विरक्ति तक आते आते। (९) अरणिक अणमार चींटियों की जीवदया से कवडी तुम्बडी को स्वयम् खाते खाते। उपसंहार इस तरह शुक्ल ध्यान में रहकर क्षपक श्रेणी में चढते हुये प्रतिपादित केवलज्ञान एक ही समय में प्राप्त करने की अनेक मुनि भगवंत व पुण्यात्मायें हुयी हैं और केवलज्ञान प्राप्त कर थोड़े ही समय में मोक्ष प्राप्त करने वाले अंतगत केवली भी हुये हैं। हमारे जैन दर्शन की यह एक विशिष्ठता है कि कितनी भी निष्ठुर और कठोर आत्मायें भी कभी अनुमोदन कभी प्रायश्चित और कभी भक्ति व कभी विरक्ति की नाव पर बैठकर भावों की उच्चतम लहरों के सहारे संसार सागर को सहज ही पार कर लेती हैं । हमें भी उन सब आत्माओं का हार्दिक अनुमोदन कर अपने जीवन को भी धन्य बनाना चाहिये। चन्दनवाला और मृगावती दासी वसुमती से बनी चन्दनबाला जो अट्ठमलय की उपवासीनी चन्दनबाला को प्रभु महावीर को बावुले वोहराते हुये केवलज्ञान की प्राप्ति भले ही नहीं हुई हो और मुन्डा हुआ सिर वे जंजीर से झकडी शरीर और प्रभु महावीर के दश बोल को चन्दनबाला के अश्रु भीने रुदन से भी चढकर गुरणि चन्दनबाला और शिष्या मृगावती का परस्पर एक दूसरे को अन्त:पूर्वक खमत श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ २०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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