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________________ जाननी । " जीतकल्प भाष्य-जीतकल्प और उसके सोपश भाष्य में भी साधु को दूर अथवा नजदीक में रहे हुए चैत्य को वन्दना करने के लिये जाने का उल्लेख है— (क) “चेइयवंदणहेउं गच्छे आसण्णदूरं वा (गाथा ७७४ पृ. ६६) "चेइयवंदणनिमित्तं आसन्नं दूरं वा गच्छेज्जा" (चूर्णि पृ. ७) (ख) विशेषावश्यकभाष्य के मूर्तिवाद समर्थक प्रकरण में से भी यहां एक गाथा का उल्लेख किया जाता है "कज्जा जिणाण पूया परिणामविसुद्धहेउओ निच्चं । दाणाइड व्व मग्गप्पभावणाओ य कहणं वा ।। ३२४७ ॥ इसका भावार्थ यह है कि गृहस्थ को प्रतिदिन जिनपूजा करनी चाहिये । क्यों कि यह दानादि की तरह परिणाम विशुद्धि का हेतु है । विशेषावश्यक भाष्य का यह समग्र स्थल देखने और मनन करने योग्य है । (ग) आवश्यक भाष्य में द्रव्यस्तव और भावस्तव और व्याख्या इस प्रकार की है— “दव्यत्थओ पुप्फाई, संतगुणकित्तणा भावे” (१९१) अर्थात् पुष्पादि के द्वारा जिनप्रतिमा का अर्चन करना द्रव्यस्तव है२ और भक्तिभाव से उनका गुणोत्कीर्तन- गुणगान करना भावस्तव कहलाता है। इसके अतिरिक्त आवश्यक चूर्णि और आवश्यक वृत्ति में महाराज उदायी के द्वारा उसकी राजधानी पाटलीपुत्र के मध्य में एक भव्य जिन मन्दिर बनवाये जाने का उल्लेख है । यथा (क) नगरनाभीए उदा३ इणा जिणघरं कारितं (पृ. १७८) (ख) “णयरनाभिए य उदायिणा चेइयहरं कारावियं- नगरनाभौ च उदायिना - चैत्यगृहं कारितं” (आ. वृ. पृ. ६८९) आवश्यकचूर्णि और आवश्यक वृत्ति के उपर्युक्त उल्लेखों का समर्थन श्री जिनप्रभसूरि ने अपने विविध तीर्थकल्प में “ तन्मध्ये श्रीनेमिचैत्यं राज्ञाकारि” (अर्थात् राजा उदायी ने पाटलीपुत्र नगर के मध्य में श्री नेमिनाथ का चैत्य बनाया) इन शब्दों में किया है (पाटलीपुत्र कल्प पृ. ६८) श्रीहरिभद्र सूरि— Jain Education International जैन परम्परा में श्री हरिभद्रसूरि का स्थान बहुत ऊंचा है, उन्होंने जैन परम्परा के धार्मिक साहित्य में जिस अलौकिक दिव्य जीवन का संचार किया है वह एक मात्र उन्हीं को आभारी है । जिनप्रतिमा और जैनाचार्य १८७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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