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________________ १७ १३८० वैशाख पार्श्वनाथ की शांतिनाथ रा.प्र.ले.सं., लेखांक ४९ वदि ५ गुरूवार धातु प्रतिमा का जिनालय लेख राधनपुर १८ १३८० माघ । चन्द्रप्रभ की महावीर बी.जै.ले.सं. लेखांक सुदि ६ सोमवार प्रतिमा का लेख जिनालय, १२१४ बीकानेर पद्मदेवसूरि के प्रशिष्य और श्रीतिलकसूरि के शिष्य राजशेखरसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित ५ सलेख जिन प्रतिमायें मिलती हैं। इनका विवरण इस प्रकार है :वि.सं. १३८६ माघ वदि २ बी. जै. ले. सं. लेखांक ३१३ वि.सं. १३९३ पौष वदि २ प्रा. ले. सं, लेखांक ६२ वि.सं. १३९३ फाल्गुन सुदि २ बी. जै. ले. सं, लेखांक ३५८ वि.सं. १४०९ फाल्गुन वदि २ वही, लेखांक १४४२ वि.सं. १४१५ ज्येष्ठ वदि १३ वही, लेखांक ४४५ मलधारगच्छीय प्रतिमालेखों की सूची में वि.सं. १२५९ के प्रतिमालेख में प्रतिमा प्रतिष्ठापक मलधारी देवानन्दसूरि का नाम आ चुका है। जैसा कि प्रारम्भ में कहा जा चुका है मलधारी देवप्रभसूरि कृत पाण्डवचरित की प्रशस्ति में भी ग्रन्थकार के ज्येष्ठ गुरूभ्राता और ग्रन्थ की रचना के प्रेरक के रूप में देवानन्दसूरि का नाम मिलता है। पाण्डवचरित का रचनाकाल वि.सं. १२७०/ई. सन् १२१४ माना जाता है। अत: समसामयिकता के आधार पर उक्त प्रशस्ति में उल्लिखित देवानन्दसूरि और वि.सं. १२५९/ई. सन् १२०३ में पार्श्वनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक देवानन्दसूरि एक ही व्यक्ति माने जा सकते हैं। महामात्य वस्तुपाल द्वारा निर्मित गिरनार स्थित आदिनाथ जिनालय के वि.सं. १२८८/ई. सन् १२३२ के दो अभिलेखों के रचनाकार नरचन्द्रसूरि और यहीं स्थित इसी तिथि के एक अन्य अभिलेख के रचनाकार नरेन्द्रप्रभसूरि महामात्य वस्तुपाल के मातृपक्ष के गुरू नरचन्द्रसूरि १३ और उनके शिष्य नरेन्द्रप्रभसूरि से अभिन्न हैं । यही बात वि.सं. १२९८/ई. सन् १२४२ के लेख में उल्लिखित माणिक्यचन्द्रसूरि के गुरू नरचन्द्रसूरि के बारे में भी कही जा सकती है। इसी प्रकार वि.सं. १३५२/ईस्वी सन् १२९६ से वि.सं. १३८०/ई. सन् १३३४ तक के प्रतिमालेखों में उल्लिखित पद्मतिलकसूरि के शिष्य श्रीतिलकसूरि एवं वि.सं. १३८६/ई. सन् १३३० से वि.सं. १४१५/ई. सन् १३५९ तक के प्रतिमालेखों में उल्लिखित उनके शिष्य राजशेखरसूरि समसामयिकता के आधार पर मलधारगच्छीय प्रसिद्ध आचार्य राजशेखरसूरि और उनके गुरू श्रीतिलकसूरि से अभिन्न माने जा सकते हैं। श्री विजयानंद सूरि स्वगारोह शताब्दी ग्रंथ १७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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