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________________ ३. मैं स्वयं को धर्म में, सदाचार में स्थिर रख सकूंगा । ४. मैं स्वयं धर्म में स्थिर रहकर दूसरों को भी धर्म में स्थापित कर पाऊंगा । इन चार उददेश्यों पर चिन्तन कर शिक्षार्थी ज्ञानाराधना में प्रवृत्त होता है । स्थानांग सूत्र में कुछ भिन्न प्रकार से शिक्षा प्राप्ति के पांच विशिष्ट उद्देश्य बताये गये हैं ९. शिक्षा प्राप्त करने से ज्ञान की प्राप्ति होगी । २. दर्शन (सम्यग् बोध) की प्राप्ति होगी । ३. चारित्र (सदाचार) की प्राप्ति होगी । ४. दूसरों के कलह, अशान्ति, द्वेष आदि का शमन कर सकूंगा। ज्ञानी बनकर समाज में शान्ति स्थापित कर सकूंगा । ५. वस्तु (पदार्थ) का यथार्थ स्वरूप जान सकूंगा । उपसंहार इस प्रकार भारतीय संस्कृति के प्राचीन ग्रंथों तथा मुख्यतः जैन ग्रंथों के अनुशीलन से प्राचीन शिक्षा प्रणाली का जो स्वरूप उपलब्ध होता है, उससे यह पता चलता है कि प्राचीन काल में शिक्षा या ज्ञान-प्राप्ति का उद्देश्य व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास करना था । शरीर एवं इन्द्रियों IT विकास करना मात्र शिक्षा का उद्देश्य नहीं है, यह तो पशुओं में भी होता है, पक्षियों और कीट-पतंगों में भी होता है। मनुष्य के भीतर तो असीम शक्तियों के विकास की संभावना छिपी है, शिक्षा के द्वारा उन शक्तियों को जागृत एवं प्रकट किया जाता है । पत्थर या मिट्टी में मूर्ति बनने की योग्यता तो है ही, कुशल शिल्पकार उसे सुन्दर आकृति देकर उस क्षमता को प्रकट कर देता है । गुरु को इसीलिए कुम्भकार या शिल्पकार बताया है जो विद्यार्थी की सुप्त / निद्रित आत्मा को जागृत कर तेजस्वी और शक्ति सम्पन्न बना देता है । व्यक्ति समाज का एक अभिन्न घटक है। निश्चित ही अगर उसके व्यक्तित्व का, शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास होगा तो उसमें तेजस्विता आयेगी । समाज स्वयं ही प्रगति और उन्नति के पथ पर अग्रसर होगा अतः व्यक्तित्व के समग्र विकास हेतु जो मानदंड, नियम, योग्यता, पात्रता तथा पद्धतियां प्राचीन समय में स्वीकृत या प्रचलित थीं, उनके अध्ययन/अनुशीलन के आधार पर आज की शिक्षा प्रणाली पर व्यापक चिन्तन / मनन व्यक्तित्व के समग्र विकास की दिशा में 'जैन शिक्षा प्रणाली की उपयोगिता' १५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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