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________________ भद्रबाहु को नियुक्तियों का कर्त्ता मानने पर आती है । हमारा यह दुर्भाग्य है कि अचेलधारा में निर्युक्तियां संरक्षित नहीं रह सकीं, मात्र भगवती - आराधना, मूलाचार और कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में उनकी कुछ गाथायें ही अवशिष्ट हैं। इनमें भी मूलाचार ही मात्र ऐसा ग्रन्थ है जो लगभग सौ नियुक्ति गाथाओं का निर्युक्ति गाथा के रूप में उल्लेख करता है । दूसरी ओर सचेल धारा में नियुक्तियां उपलब्ध हैं, उनमें अनेक भाष्यगाथायें मिश्रित हो गई हैं, अत: उपलब्ध निर्युक्तियों में से भाष्य गाथाओं एवं प्रक्षिप्त गाथाओं को अलग करना एक कठिन कार्य है, किन्तु यदि एक बार नियुक्तियों के रचनाकाल, उसके कर्त्ता तथा उनकी परम्परा का निर्धारण हो जाये, तो यह कार्य सरल हो सकता है । आशा है जैन विद्या के निष्पक्ष विद्वानों की अगली पीढ़ी इस दिशा में और भी अन्वेषण कर नियुक्ति साहित्य सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करेगी । प्रस्तुत लेखन में मुनि श्री पुण्यविजयजी का आलेख मेरा उपजीव्य रहा है। आचार्य हस्तीमल जी ने जैनधर्म के मौलिक इतिहास के लेखन में भी उसी का अनुसरण किया है । किन्तु मैं उक्त दोनों के निष्कर्षों से सहमत नहीं हो सका । यापनीय सम्प्रदाय पर मेरे द्वारा ग्रन्थ लेखन के समय मेरी दृष्टि में कुछ नई समस्यायें और समाधान दृष्टिगत हुए और उन्हीं के प्रकाश में मैंने कुछ नवीन स्थापनायें प्रस्तुत की हैं, वे सत्य के कितनी निकट हैं, यह विचार करना विद्वानों का कार्य है। मैं अपने निष्कर्षो को अन्तिम सत्य नहीं मानता हूं अतः सदैव उनके विचारों एवं समीक्षाओं से लाभान्वित होने का प्रयास करूंगा । सन्दर्भ १. (अ) निज्जुत्ता ते अत्था, जं बद्धा तेण होइ णिज्जुत्ती । (ब) सूत्रार्थयो परस्पर निर्योजनं सम्बन्धनंनिर्युक्तिः - आवश्यकनिर्युक्ति, गाथा ८८ • आवश्यकनिर्युक्ति टीका हरिभद्र, गाथा ८३ की टीका २. अत्थाणं उग्गहणं अवग्गहं तह विआलणं इहं । ३. ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा । सणासईई पण्णा सव्वं आभिनिबोहियं ॥ निर्युक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन Jain Education International - आवश्यकनिर्युक्ति, ३ ४. आवस्सगस्स दसकालिअस्स तह उत्तरज्झमायारे । - आवश्यकनिर्युक्ति, १२ For Private & Personal Use Only ११५ www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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