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________________ उपरोक्त दस निर्युक्तियों की रचना से पूर्व चाहे आर्यगोविन्द की नियुक्ति अस्तित्व में हो, किन्तु नन्दीसूत्र एवं पाक्षिक सूत्र में नियुक्ति सम्बन्धी उल्लेख हैं, वे आचारांग आदि आगम ग्रन्थों की निर्युक्ति के सम्बन्ध में हैं, जबकि गोविन्दनिर्युक्ति किसी आगम ग्रन्थ पर नियुक्ति नहीं है 1 उसके सम्बन्ध में निशीथचूर्णि आदि में जो उल्लेख हैं वे सभी उसे दर्शनप्रभावक ग्रन्थ और एकेन्द्रिय में जीव की सिद्धि करने वाला ग्रन्थ बतलाते हैं । ६४ अत: उनकी यह मान्यता कि नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र में नियुक्ति के जो उल्लेख हैं, वे गोविन्दनिर्युक्ति के संदर्भ में हैं, समुचित नहीं है । वस्तुतः नन्दीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र में जो नियुक्तियों के उल्लेख हैं वे आगम ग्रन्थों की नियुक्तियों के हैं । अतः यह मानना होगा कि नन्दी एवं पाक्षिकसूत्र की रचना के पूर्व अर्थात् पांचवी शती के पूर्ण आगमों पर नियुक्ति लिखी जा चुकी थी । २. दूसरे इन दस निर्युक्तियों में और भी ऐसे तथ्य हैं जिनसे इन्हें वाराहमिहिर के भाई एवं नैमित्तिक भद्रबाहु (विक्रम संवत् ५६६ ) की रचना मानने में शंका होती है । आवश्यक निर्युक्ति की सामायिकनिर्युक्ति में जो निह्नवों के उत्पत्ति स्थल एवं उत्पत्तिकाल सम्बन्धी गाथायें हैं एवं उत्तराध्ययननिर्युक्ति में उत्तराध्ययन के तीसरे अध्ययन की नियुक्ति में जो शिवभूति का उल्लेख है, वे प्रक्षिप्त हैं। इसका प्रमाण यह है कि उत्तराध्ययनचूर्णि, जो कि इस नियुक्ति पर एक प्रामाणिक रचना है, में १६७ गाथा तक की ही चूर्णि दी गयी है । निह्नवों के सन्दर्भ में अन्तिम चूर्ण 'जेट्ठा सुदंसण' नामक १६७वीं गाथा की है। उसके आगे निह्नवों के वक्तव्य को सामयिक नियुक्ति (आवश्यकनिर्युक्ति) के आधार पर जान लेना चाहिए ऐसा निर्देश है । ६५ ज्ञातव्य है कि सामायिकनिर्युक्ति में बोटिकों का कोई उल्लेख नहीं है। हम यह भी बता चुके हैं कि उस निर्युक्ति में जो बोटिक मत के उत्पत्तिकाल एवं स्थल का उल्लेख है, वह प्रक्षिप्त है एवं वे भाष्य गाथाएं हैं । उत्तराध्ययनचूर्णि में एक संकेत यह भी मिलता है कि उसमें निह्नवों की कालसूचक गाथाओं को निर्युक्तिगाथाएं न कहकर आख्यानक संग्रहणी की गाथा कहा गया है ।" इससे मेरे उस कथन की पुष्टि होती है कि आवश्यकनिर्युक्ति में जो निह्नवों के उत्पत्तिनगर एवं उत्पत्तिकाल सूचक गाथाएं हैं वे मूल में निर्युक्ति की गाथाएं नहीं हैं, अपितु संग्रहणी अथवा भाष्य से उसमें प्रक्षिप्त की गयी हैं। क्योकि इन गाथाओं में उनके उत्पत्ति नगरों एवं उत्पत्ति-समय दोनों की संख्या आठ-आठ है । इस प्रकार इनमें बोटिकों के उत्पत्तिनगर और समय का भी उल्लेख है - आश्चर्य यह है कि ये गाथाएं सप्त निह्नवों की चर्चा के बाद दी गई— जबकि बोटिकों की उत्पत्ति का उल्लेख तो इसके भी बाद में और मात्र एक गाथा में है । अत: ये गाथाएं किसी भी स्थिति में निर्युक्ति की गाथायें नहीं मानी जा सकती हैं । निर्युक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन Jain Education International For Private & Personal Use Only १०५ www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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