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________________ सन्दर्भो से होती है। २. उत्तराध्ययननियुक्ति गाथा २९ में ‘विनय' की व्याख्या करते हुए यह कहा गया है—‘विणओ पुबुद्दिट्ठा' अर्थात् विनय के सम्बन्ध में हम पहले कह चुके हैं।१८ इसका तात्पर्य यह है कि उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना से पूर्व किसी ऐसी नियुक्ति की रचना हो चुकी थी, जिसमें विनय सम्बन्दी विवेचन था । यह बात दशवैकालिक नियुक्ति को देखने से स्पष्ट हो जाती है, क्योंकि दशवैकालिकनियुक्ति में विनय समाधि नामक नवें अध्ययन की नियुक्ति (गाथा ३०९ से ३२६ तक) में 'विनय' शब्द की व्याख्या है। इसी प्रकार उत्तराध्ययननियुक्ति (गाथा २०७) में 'कामापुबुद्दिट्ठा' कहकर यह सूचित किया गया है कि काम के विषय में पहले विवेचन किया जा चुका है। यह विवेचन भी हमें दशवैकालिकनियुक्ति की गाथा १६१ से १६३ तक में मिल जाता है।२१ उपरोक्त दोनों सूचनाओं के आधार पर यह बात सिद्ध होती है कि उत्तराध्ययननियुक्ति दशवैकालिकनियुक्ति के बाद ही लिखी गयी।। ३. आवश्यकनियुक्ति के बाद दशवैकालिकनियुक्ति और फिर उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना हुई, यह तो पूर्व चर्चा से सिद्ध हो चुका है। इन तीनों नियुक्तियों की रचना के पश्चात् आचारांगनियुक्ति की रचना हुई है, क्योंकि आचारांग नियुक्ति की गाथा ५ में कहा गया है'आयारे अंगम्मि य पुव्वुद्दिट्ठ चउक्कयं निक्खेवो' आचार और अंग के निक्षेपों का विवेचन पहले हो चुका है।२२ दशवैकालिकनियुक्ति में दशवैकालिकसूत्र के क्षुल्लकाचार अध्ययन की नियुक्ति (गाथा ७९-८८) में 'आचार' शब्द के अर्थ का विवेचन२२ तथा उत्तराध्ययननियुक्ति में उत्तराध्ययनसूत्र के तृतीय 'चतुरंग' अध्ययन की नियुक्ति करते हुए गाथा १४३-१४४ में 'अंग' शब्द का विवेचन किया है। अत: यह सिद्ध होता है कि आवश्यक, दशवैकालिक एवं उत्तराध्ययन के पश्चात् ही आचारांगनियुक्ति का क्रम है। इसी प्रकार आचारांग की चतुर्थ विमुक्तिचूलिका की नियुक्ति में विमुक्ति शब्द की नियुक्ति करते हुए गाथा ३३१ में लिखा है कि 'मोक्ष' शब्द की नियुक्ति के अनुसार ही 'विमुक्ति' शब्द की नियुक्ति भी समझना चाहिए।२४ चूंकि उत्तराध्ययन के अट्ठावीसवें अध्ययन की नियुक्ति (गाथा ४९७-९८) में मोक्ष शब्द की नियुक्ति की जा चुकी थी।५ अत: इससे यही सिद्ध हुआ कि आचारांगनियुक्ति का क्रम उत्तराध्ययन के पश्चात् है। आवश्यकनियुक्ति, दशवैकालिकनियुक्ति, उत्तराध्ययननियुक्ति एवं आचारांगनियुक्ति के पश्चात् सूत्रकृतांगनियुक्ति का क्रम आता है। इस तथ्य की पुष्टि इस आधार पर भी होती है कि सूत्रकृतांगनियुक्ति की गाथा ९९ में यह उल्लिखित है कि 'धर्म' शब्द के निक्षेपों का विवेचन पूर्व नियुक्ति साहित्य : एक पनर्चिन्तन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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