SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उनके छोटे-छोटे राज्यों का भारत में विलीनीकरण हो गया। राज्य चले जाने के बाद उन्होंने अपना व्यवसाय कृषि को चुना। वे पूर्णतया शाकाहारी हैं। उनका जीवन सरलता, सौम्यता, मानवता एवं निष्कपटता से सभर है। वे निर्भीक और परिश्रमी हैं। स्वाभिमान की भावना भी उनमें उत्कट है । वे न किसी के आगे हाथ पसारते हैं न अपना अपमान किसी तरह सह सकते हैं। परमार क्षत्रियों का धर्मप्रेम परमार क्षत्रिय स्वभावत: शूरवीर, निडर, परिश्रमी, सरलात्मा और धार्मिक प्रवृत्ति के लोग हैं । मध्यप्रदेश और गुजरात की सीमान्त में रहने के कारण दोनों संस्कृतियों का समन्वय उनमें मिलता है। महाराजा विक्रमादित्य, मुंज और भोज की वीरता का रक्त उनकी नसों में बहता है और कलिकाल-सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य एवं महाराज कुमारपाल द्वारा प्रवर्तित अहिंसा का घोष भी उनके कणों में गूंजता है। बोडेली जिला बडौदा के आसपास परमार क्षत्रियों के गांव हैं । बोडेली उनका व्यापारिक केन्द्र है। यहां ई. सन् १९१५ के लगभग सुश्रावक सोमचन्द्र भाई केशवलाल की दुकान थी। वे जैन धर्म का विधिवत पालन करते थे। परमार क्षत्रिय भाई अपनी जीवनावश्यक चीजें खरीदने के लिए सोमचन्द्र भाई की दुकान पर आते-जाते रहते थे। वे उनकी सरलता, निष्कपटता एवं धार्मिक जिज्ञासा से प्रभावित हुए। उन्होंने सोचा यदि इन लोगों को जैन धर्म की महिमा बतायी जाए तो अवश्य शुभ परिणाम आ सकता है। एक दिन उन्होंने सालपुरा गांव के सीताभाई नाम के व्यक्ति से जो उनके अन्तरंग मित्र भी थे जैन धर्म के मौलिक सिद्धान्तों की चर्चा की। वे जैन धर्म से बहुत प्रभावित हुए और स्वयं जिन शासन को समर्पित हो गए। सीताभाई ने जैन धर्म की महानता अपने अन्य परमार क्षत्रिय भाईयों को बताई और वे जैन होते गए। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि परमार क्षत्रिय कितने धर्म प्रेमी और जिज्ञासु थे। उनमें अहिंसा, सत्य, दया, प्रेम और मैत्री की बीज पहले से ही पड़े हुए थे। केवल उन्हें संवर्धित करने की आवश्यकता थी। इस आवश्यकता को सोमचन्द्रभाई ने समझा और पूरी की। परमार क्षत्रियवंश के आद्य जैन दीक्षित सोमचन्द्रभाई ने जैन धर्म के मौलिक सिद्धान्तों का प्रचार चालू रखा और उनसे प्रभावित होकर सालपुरा, डुमां, झांपा और सानतलावड़ा आदि गांवों के कुछ परिवारों ने जैन धर्म को स्वीकार किया और इस तरह परमार क्षत्रिय जैनों की संख्या दो सौ अस्सी हो गई। ८० श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy