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________________ एक लाख परमारों का उद्धार : बीसवीं सदी का एक ऐतिहासिक कार्य D मुनि नवीनचन्द्र विजयजी इस कालचक्र के प्रारंभ में जब प्रथम तीर्थंकर भगवान श्रीऋषभदेव का अवतरण हुआ तब उनके पिता नाभिराय ने संसार की व्यवस्था का भार ऋषभदेव के कंधों पर डाला। उन्होंने इस व्यवस्था के क्रम में सर्वप्रथम तीन-तीन वर्गों की स्थाना की क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती ने व्रतधारी श्रावकों के चौथे वर्ण की स्थापना की जो कालान्तर में ब्राह्मण वर्ण के रूप में ख्यात हुआ। इस वर्ण-व्यवस्था को आज हम जिस विकृतावस्था में देख रहे हैं वैसी उस समय नहीं थी। क्षत्रिय वंश की श्रेष्ठता जैन धर्म की मान्यता के अनुसार सबसे श्रेष्ठ वर्ण क्षत्रिय है। चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ वासुदेव और नौ प्रतिवासुदेव क्षत्रिय होते हैं। जैन धर्म को क्षत्रियों का धर्म कहा जाता है । क्षत्रियों के द्वारा ही इस धर्म का प्रसार और संवर्धन हुआ है। भगवान महावीर स्वामी जब देवानंद ब्राह्मणी की कुक्षि में अवतरित हुए तो इन्द्र ने सोचा कि ऐसा न हुआ है न होगा। तीर्थंकर का जीव केवल क्षत्रिय कुल में ही उत्पन्न होता है। यह सोचकर इन्द्र ने भगवान महावीर के पौद्गालिक शरीर को ब्राह्मणी की कुक्षि से लेकर त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में स्थापित एक लाख परमारों का उद्धार : बीसवीं सदी का एक ऐतिहासिक कार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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