SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ टीका है। गीता का शांकरभाष्य और श्रीहर्ष का खण्डनखण्डखाद्य है । वैशेषिक और न्यायदर्शन के भाष्य और उनके उपर की क्रमिक उदयनाचार्य तक की सब टीकाएं मौजूद हैं । न्यायसूत्र उपर का भाष्य, उसका वार्तिक, वार्तिक पर की तात्पर्यटीका और तात्पर्यटीका पर तात्पर्यपरिशुद्धि तथा इन पांचों ग्रन्थों के उपर विषमपद-विवरणरूप ‘पंचप्रस्थान' नामक एक अपूर्व ग्रन्थ इसी संग्रह में है । बौद्ध परम्परा के महत्त्वपूर्ण तर्क-ग्रन्थों में से सटीक सटिप्पण न्यायबिन्दु तथा सटीक सटिप्पण तत्त्वसंग्रह जैसे कई ग्रन्थ हैं । यहां एक वस्तु की ओर मैं खास निर्देश करना चाहता हूं जो संशोधकों के लिये उपयोगी है । अपभ्रंश भाषा के कई अप्रकाशित तथा अन्यत्र अप्राप्य ऐसे बारहवीं शती के बड़े बड़े कथा-ग्रंथ इस भाण्डार में हैं, जैसे कि विलासवईकहा, अरिट्ठनेमिचरिउ इत्यादि । इसी तरह छन्द विषयक कई ग्रन्थ हैं जिनकी नकलें पुरातत्त्वविद श्री जिनविजयजी ने जैसलमेर में जाकर कराई थी। उन्हीं नकलों के आधार पर प्रोफेसर वेलिनकर ने उनका प्रकाशन किया है। खम्भात के श्रीशान्तिनाथ ताड़पत्रीय ग्रन्थभाण्डार की दो-एक विशेषताएं ये हैं। उसमें चित्र-समृद्धि तो है ही, पर गुजरात के सुप्रसिद्ध मंत्री और विद्वान् वस्तुपाल की स्वहस्तलिखित धर्माभ्युदय महाकाव्य की प्रति है। पाटन के तीन ताड़पत्रीय संग्रहों की अनेक विशेषताएं हैं। उनमें से एक तो यह है कि वहीं से धर्म कीर्ति का हेतुबिन्दु अर्चट की टीका वाला प्राप्त हुआ, जो अभी तक मूल संस्कृत में कहीं से नहीं मिला । जयराशिका तत्त्वोपप्लव जिसका अन्यत्र कोई पता नहीं वह भी यहीं से मिला। कागज-ग्रन्थ के अनेक भाण्डारों में से चार-पांच का निर्देश ही यहां पर्याप्त होगा। पाटनगत तपागच्छ का भाण्डार गुजराती, राजस्थानी, हिन्दी और फारसी भाषा के विविध विषयक सैकड़ों ग्रन्थों से समृद्ध हैं, जिसमें 'आगमडम्बर' नाटक भी है, जो अन्यत्र दुर्लभ है। पाटनगत भाभा के पाडे का भाण्डार भी कई दृष्टि से महत्त्व का है । अभी अभी उसमें से छठी-सातवीं शती के बौद्ध तार्किक आचार्य श्री धर्मकीर्ति के सुप्रसिद्ध 'प्रमाणवार्तिक' ग्रन्थ की स्वोपज्ञ वृत्ति मिली है जो तिब्बत से भी आज तक प्राप्त नहीं हुई। खम्भात स्थित जैनशाला का भाण्डार भी महत्त्व रखता है। उसी में वि.सं. १२३४ की लिखी जिनेश्वरीय ‘कथाकोश' की प्रति है। जैन भाण्डारों में पाई जाने वाली कागज की पोथियों में यह सबसे पुरानी है। आठ सौ वर्ष के बाद आज भी उसके कागज की स्थिति अच्छी है । उपाध्याय श्री यशोविजयजी के स्वहस्त-लिखित कई ग्रन्थ, जैसे कि विषयतावाद, स्तोत्रसंग्रह आदि, उसी भाण्डार से अभी अभी मुझे मिले हैं । जैसलमेर के एक कागज के भाण्डार में न्याय और वैशेषिक दर्शन के सूत्र, भाष्य, टीका, अनुटीका आदि का ६४ श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy