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________________ ३५१ आयुर्वेद जगत् में जैनाचार्यों का कार्य कार्य या सा चिकित्सा दशरथगुरुभिर्मेघनादैः शिशूनां वैद्यं वृष्यं च दिव्यामृतमपि कथितं सिंहनादैर्मुनींद्रैः ॥ ___ अ. २०, श्लोक ८५ पूज्यपाद आचार्य ने शालाक्यतन्त्र नामक ग्रन्थ की रचना की है, पात्र-स्वामी ने शल्यतन्त्र नामक ग्रन्थ की रचना की है, प्रसिद्ध आचार्य सिद्धसेन ने विष व उग्र ग्रहों के शमन विधि का निरूपण किया है, दशरथ गुरु व मेघनाथ सूरि ने बाल रोगों की चिकित्सा सम्बन्धी ग्रन्थों का प्ररूपण किया है। सिंहनाद आचार्य ने शरीर बलवर्धक प्रयोगों का प्रतिपादन किया है, इनमें आचार्य पूज्यपाद व पात्र-स्वामीने शल्यतंत्र के संबंधी विस्तृत प्रकाश डाला प्रतीत होता है, शल्यतंत्र जो आज के युग में प्रगति को प्राप्त ऑपरेशन (Surgery) चिकित्सा है, अर्थात शस्त्रचिकित्सा है, कहीं कहीं संग्रह के रूप में वे प्रकरण उपलब्ध होते हैं, पात्रस्वामी, सिद्धसेन, मेघनाद, दशरथसूरि और सिंहनाद के ग्रंथ उपलब्ध नहीं हैं, अन्वेषण व अनुसंधान की आवश्यकता है। महर्षि समंतभद्र ने भी वैद्यक विभाग में ग्रंथों की रचना की है, इस संबंध का उल्लेख कल्याणकारक में निम्न प्रकार है। अष्टांगमष्यखिलमत्र समंतभद्रैः प्रोक्तं सविस्तरवचो विभवैर्विशेषात् संक्षेपतो निगदितं तदिहात्मशक्त्या कल्याणकारकमशेषपदार्थमुक्तम् ॥ अ. २०, श्लोक ८६ आचार्य समंतभद्र ने अष्टांग आयुर्वेद नामक विस्तृत व गंभीर विवेचनात्मक ग्रंथ की रचना की है, उसीका अनुकरण कर मैंने इस कल्याण कारक को संक्षेप के साथ संपूर्ण विषयों का प्रतिपादन करते हुए लिखा है। इससे ज्ञात होता है कि उग्रादित्याचार्य के समय समंतभद्र का वह ग्रंथ अवश्य विद्यमान था। काश कितने महत्व का वह ग्रंथ होगा, हम बडे अभागी हैं कि उक्त ग्रंथ का दर्शन भी नहीं कर सके। आचार्य समंतभद्र आचार्य समंतभद्र का समय तीसरा शतमान माना जाता है, महर्षि पूज्यपाद के पहिले समंतभद्र हुए हैं, उनकी सर्वतोमुखी विद्वत्ता का वर्णन करना शब्दशक्ति के अतीत है । उनके द्वारा निर्मित सिद्धांत, न्याय के ग्रंथ जिस प्रकार गंभीर हैं उसी प्रकार वैद्यक ग्रंथ भी महत्त्वपूर्ण है। उनके द्वारा 'सिद्धांत-रसायन कल्प' नामक महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की गई थी, वह ग्रंथ १८००० श्लोक परिमाण था, यद्यपि वह ग्रंथ आज समग्र उपलब्ध नहीं है तथापि यत्रतत्र उस ग्रंथ के बिखरे हुए श्लोक उपलब्ध होते हैं, जिनको भी संग्रह करने पर दो तीन हजार श्लोक सहज एकत्रित हो सकते हैं। अहिंसा प्रधान धर्म के उपासक होने से वैद्यक ग्रंथ में भी उन्होंने अहिंसात्मक प्रयोगों का ही प्रतिपादन किया है। औषधि-निर्माण में सिद्धांत असमर्थित विषयों को ग्रहण नहीं किया है, यह जैनाचार्यों के ग्रंथ की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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