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________________ पं. आशाधरजी और उनका सागारधर्मामृत २६३ श्रावक व्रत पालन करने वाले श्रावक को मुनिपद का इच्छुक होना चाहिये यह विशेषण दिया गया है उसकी एक देश पूर्ति दिग्वत पालन करने से होती है। पूज्य गृद्धपिच्छक के मतानुसार इस ग्रन्थ में भी दिग्व्रत, अनर्थदंड त्यागवत, भोगोपभोग परिमाणव्रत यह तीन गुणव्रत तथा सामायिक, देशव्रत, प्रोषधोपवासव्रत, अतिथि संविभागवत इन चारों को शिक्षाव्रत माना है । परन्तु स्वामी समन्तभद्र ने देशव्रत को गुणव्रत तथा भोगोपभोग परिमाण व्रत को शिक्षाव्रत माना है । दिग्वत–यावज्जीव दशों दिशाओं में आने जाने का परिमाण करना । अनर्थदंड त्यागव्रत-व्यर्थ के पापों का त्याग करना । भोगोपभोगपरिमाणवत-भोगोपभोग सामग्री का नियम करना । सामायिक—आर्त रौद्र ध्यान का त्याग कर समता भाव धारण करना । देशव्रत-दिग्व्रत में की हुई मर्यादा में दिन घटि का आदि का नियम करना । प्रोषधोपवासव्रत-अष्टमी चतुर्दशी पर्व में चारों प्रकार के आहार का त्याग करना । अतिथिसंविभागवत-अपने लिये बनाये हुये भोजन में से साधुओं का हिस्सा रखना । अनर्थदंड व्रत के प्रमादचर्या पापोपदेशादि पांच भेद है । भोगोपभोग परिमाणव्रत में ही १५ खर कर्मों का त्याग गर्भित है। बन में अग्नि लगाना, तालाब को शोषण करना इत्यादि पाप बहुल क्रूर कर्मों को खर कर्म कहते हैं। सघात बहुस्थावर घात, प्रमादविषय, अनिष्ट और अनुपसेव्य इन पांच अभक्षों का वर्णन भी भोगोपभोग परिमाण व्रत में समाविष्ट किया है। शिक्षाप्रधान व्रतों को शिक्षाव्रत कहते है। जैसे देशावकाशिक व्रत में प्रातःकाल की सामायिक के अनंतर दिन भर के लिये जो क्षेत्र विशेष की अपेक्षा नियम विशेष किये जाते हैं उससे सर्व पापों के त्याग की शिक्षा मिलती है । सामायिक और प्रोषोधोपवास में भी कुछ काल तक समता भाव रहता है तथा अतिथि संविभागवत में भी सर्व परिग्रह त्यागी अतिथि का आदर्श सामने रहता है इसलिये इन व्रतों से भी सर्व पापों के त्याग की शिक्षा मिलती है। षष्ठ अध्याय श्रावक की दिनचर्या का वर्णन सब से प्रथम ब्राह्ममुहूर्त में उठकर नमस्कार मंत्र का जप करना चाहिये । तदनन्तर प्रातर्विधि से निवृत्त होकर श्रावक कर्तव्य है कि अपने गृहचैत्यालय में जिनेन्द्र देव की पूजा करके ईर्यापथ शुद्धि पूर्वक नगरस्थ जिनमन्दिर जावे । वहाँ पर वीतराग प्रभु की पूजन करे तथा धर्मात्माओं को धार्मिक कार्यों में प्रोत्साहन द, स्वतः स्वाध्याय करें और आपत्ति में फंसे हुये श्रावकों का उद्धार करे । मन्दिरजी आकर न्याय्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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