SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 428
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य श्री अमृतचन्द्र सूरिविरचित श्री जिननामावली डॉ. पद्मनाभ श्रीवर्मा जैनी, युनिवर्सिटी ऑफ कॅलिफोर्निया, यू. एस. ए. भगवान् श्री कुन्दकुन्दाचार्यप्रणीत समयसार के कुशल भाष्यकार श्री अमृतचन्द्र सूरि का नाम सभा अध्यात्म प्रेमियोकों विदित है। लघुतत्वस्फोट (या शक्तिमणितकोश) नामक उनकी एक श्रेष्ठ कृति आजतक दिगम्बर समाज में भी अज्ञात ही थी। सद्भाग्य से इस ग्रन्थ की एक ही ताडपत्रीय प्रति अहमदाबाद के श्वेताम्बर जैन मन्दिर के डेला भण्डार में होने का समाचार उस सम्प्रदाय के आगमोद्धारक मुनिराज श्री पुण्यविजयजी से प्राप्त हुआ । पाठकों को याद होगा कि इन्हीं मुनि श्री के प्रयत्न से आचार्य श्री अकलङ्कदेव विरचित प्रमाणसंग्रह की प्रति पाटण के भण्डार से प्राप्त हुई थी जिसका सम्पादन स्व० श्री. न्यायाचार्य महेन्द्रकुमारजी से श्री सिंधी जैन सिरीज से हुआ था। मुनिराज श्री पुण्यविजयजी ने लघुतत्त्व कोश की कॉपी करा के सम्पादन के लिए मेरे पास भेजने की उदारता की है। यथावकाश अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई विद्यामन्दिर से यह ग्रन्थ प्रकाशित होगा। लघुतत्त्वस्फोट में कुल ६२५ (छ: सौ पचीस ) श्लोक हैं। पूरा ग्रन्थ एक महान् स्तोत्र ही है जिसके द्वारा आचार्य श्री ने जैन तत्त्वका, विशेषतः अनेकान्त का, रसपूर्ण बिवेचन किया है। भाषा पांडित्यपूर्ण है और कुछ कठिन भी । इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में श्री जिननामावली दी गई है जिसमें कौशल्य के साथ चौबीस तीर्थङ्करोंके नाम गिनाए गये हैं। चतुर्विंशति जिनस्तव जैनोंके देवपूजा का एक अवश्य अङ्ग है । स्वामी श्री समन्तभद्राचार्य के बृहत्स्वयम्भूस्तोत्र आदि में तत्त्वचर्चा भी काफी मिलती है । इसीका कुछ अनुसरण श्री अमृतचन्द्राचार्य के इस जिननामावली में उपलब्ध होता है । वाचक-वाच्य, सत्-असत्, द्वैत-अद्वैत, नित्य-अनित्य आदि अनेक द्वन्द्वों को एकत्र लाकर अनेकान्तात्मक सद्र्व्यका प्ररूपण इस जिननामावली में किया गया है। श्री १०८ चारित्रचक्रवर्ति आचार्य शान्तिसागर महाराज के आशीर्वाद से श्री जिनवाणी जीर्णोद्धार संस्था ने जो महान् प्रभावना का कार्य गत पचीस वर्षों में किया है उसकी रजतजयन्ति के शुभावसरपर इस अज्ञात ग्रन्थ का एक छोटासा भी भाग क्यों न हो, प्रकट करना उचित ही है । आशा है विद्वज्जन इसका 'पठन और मनन करेंगे और इसपर विचार विमर्श भी करेंगे। २२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy