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________________ चन्द्रप्रभचरितम् : एक परिशीलन १९७ अपने नगर की शोभा बढ़ाता है । वहाँ अजितजय उसे अपना उत्तराधिकार सौंप देते हैं। चक्रवर्ती होने से वह चौदह रत्नों एवं नौ निधियों का स्वामित्व प्राप्त करता है । अजितंजय तीर्थङ्कर स्वयंप्रभ के निकट जिन दीक्षा ले लेता है, और वहीं पर सम्राट् अजितसेन के हृदय में सच्ची श्रद्धा (सम्यग्दर्शन ) जाग उठती है। दिग्विजय में पूर्ण सफलता प्राप्त करके सम्राट् राज्य का संचालन करने लगता है। किसी दिन एक उन्मत्त हाथी ने एक मनुष्य की हत्या कर डाली। इस दुःखद घटना' को देख कर सम्राट् को वैराग्य हो जाता है, फलतः वह अपने पुत्र जितशत्रु को अपना आराअधिकार सौंप कर शिवंकर' उद्यान में गुणप्रभ मुनि के निकट जिन दीक्षा ग्रहण कर लेता है, और फिर घोर तपश्चरण करता है। ४. अच्युतेन्द्र–घोर तपश्चरण करने से वह सम्राट अच्युतेन्द्र होता है। बाईस सागरोपम आयु की अन्तिम अवधि तक वह दिव्य सुख का अनुभव करता है । ५. राजा पद्मनाभ--आयु समाप्त होने पर अच्युतेन्द्र अच्युत स्वर्ग से चयकर घातकीखण्ड द्वीपवर्ती मङ्गलावती देश के रत्नसंचयपुर में राजा कनकप्रभ के यहाँ उनकी प्रधान रानी सुवर्णमाला की कुक्षि से पद्मनाभ नामक पुत्र होता है। किसी दिन एक बूढ़े बैल को दलदल में फंस जाने से मरते देखकर कनकप्रभ को वैराग्य हो जाता है। फलतः वह अपने पुत्र पद्मनाभ को अपना राज्य देकर श्रीधरमुनि से जिनदीक्षा ले लेता है, और दुर्धर तप करता है । पिता के विरह से वह कुछ दिन दुःखी रहता है। फिर मन्त्रियों के प्रयत्न से वह अपने राज्य का परिपालन करने लगता है। कुछ काल बाद अपने पुत्र को युवराज बनाकर वह अपनी रानी सोमप्रभा के साथ आनन्दमय जीवन बीताने लगता है । किसी दिन माली के द्वारा श्रीधरमुनि के पधारने के शुभ समाचार सुनकर पद्मनाभ उनके दर्शनों के लिए 'मनोहर' उद्यान में जाता है। दर्शन करने के उपरान्त वह उनके आगे अपनी तत्त्वजिज्ञासा प्रकट करता है। उत्तर में वे तत्त्वोपप्लव आदि दर्शनों के मन्तव्यों की विस्तृत मीमांसा करते हुए सात तत्त्वों के स्वरूप का निरूपण करते हैं। उसे सुनकर राजा पद्मनाभ का संशय दूर हो जाता है। इसके पश्चात् पद्मनाभ के पूछने पर वे उसके पिछले चार भवों का विस्तृत वृत्तान्त सुनाते हैं। इस वृत्तान्त की सच्चाई पर कैसे विश्वास हो ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए मुनिराज ने कहा-'राजन् , आज से दसवें दिन एक मदान्ध हाथी अपने झुण्ड से बिछुड़कर आपके नगर में प्रवेश करेगा। उसे देखकर आपको मेरे कथन पर विश्वास हो जायगा'। इसके उपरान्त मुनिराज से व्रत ग्रहण कर वह अपनी राजधानी में लौट आता है। ठीक दसवें दिन एक मदान्ध हाथी सहसा राजधानी में घुसकर उपद्रव करने लगता है। पद्मनाभ उसे अपने १. उ. पु. एवं पुराण सा. में इस घटना का भी उल्लेख नहीं है। २. उ. पु. ( ५४. १२२) में उद्यान का नाम 'मनोहर' लिखा है। ३. पुराण सा. (८२.३२) में कनकाम नाम दिया है। ४. पुराण सा. (८२.३२) में रानी का नाम कनकमाला लिखा है। ५. उ. पु. तथा पुराण सा. में इस घटना की चर्चा नहीं है। ६. उ. पु. (५४.१४१) में पद्मनाभ की अनेक रानियाँ होने का संकेत मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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