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________________ १९० आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ चिरकाल तक शिष्यों का शासन करनेवाले भगवान् जिनसेन ने कहा है । इसका अवशिष्ट भाग निर्मल बुद्धिवाले गुणभद्र ने अति विस्तार के भयसे और क्षेत्र काल के अनुरोध से संक्षेप में संग्रहीत किया है ' । आदिपुराण में ६७ छन्दों का प्रयोग हुआ है, तथा १०९७९ श्लोक हैं जिसका अनुष्टुप् छन्दों की अपेक्षा ११४२९ श्लोक प्रमाण होता है । भगवान् वृषभदेव और सम्राट् भरत ही आदि पुराण के प्रमुख कथानायक हैं। ये इ प्रभावशाली हुए हैं कि इनका जैन ग्रन्थों में तो उल्लेख आता ही है उसके शिवाय वेद के मन्त्रों, जैनेतर पुराणों, उपनिषदों आदि में भी उल्लेख पाया जाता है । भागवत में भी मरुदेवी, नाभिराय, वृषभदेव और उनके पुत्र भरत का विस्तृत विवरण दिया है । यह दूसरी बात है कि वह कितने ही अंशों में विभिन्नता रखता है । उत्तर पुराण महापुराण का उत्तर भाग उत्तर पुराण के नाम से प्रसिद्ध है । इसके रचयिता गुणभद्राचार्य हैं । इसमें अजितनाथ को आदि लेकर २३ तीर्थंकर, ११ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ बलभद्र और ९ प्रतिनारायण तथा जीवन्धरस्वामी आदि कुछ विशिष्ट पुरुषों के कथानक दिये हुए हैं । इसकी रचना भी परमेश्वर कवि के. गद्यात्मक पुराण के आधारपर हुई होगी। आठवें, सोलहवें, बाईसवें, तेईसवें और चौवीसवें तीर्थंकर को छोडकर अन्य तीर्थंकरों के चरित्र बहुत ही संक्षेप से लिखे गये हैं । इस भाग में कथा की बहुलता ने कवि की कवित्व शक्तीपर आघात किया है। जहां तहां ऐसा मालूम होता है कि कवि येन केन प्रकारेण कथाभाग को पूरा कर आगे बढ जाना चाहते हैं । पर फिर भी बीच बीच में कितने ही ऐसे सुभाषित आ जाते हैं जिनसे पाठक का चित्त प्रसन्न हो जाता है । उत्तर पुराण में १६ छन्दों का प्रयोग हुआ है और उनमें ७५७५ पद्य हैं । अनुष्टुप छन्द के आदि पुराण और उत्तर पुराण दोनों को मिलाकर महापुराण का रूप में उनका ७७७८ परिमाण होता है । १९२०७ का अनुष्टुप प्रमाण परिमाण है । महापुराण के रचयिता श्री जिनसेन स्वामी थे जो कि न केवल कवि ही थे, सिद्धान्त शास्त्र के अगाध वैदुष्य से परिपूर्ण थे । इसीलिये तो वे अपने गुरु वीरसेन स्वामि के द्वारा प्रारब्ध जयधवल टीका को पूर्ण कर सके थे । वीरसेन स्वामी बीस हजार श्लोक प्रमाण टीका लिखकर जब स्वर्ग सिधार गये तब जिनसेन ४०००० श्लोक प्रमाण टीका लिखकर उसे पूर्ण किया। यह नौवीं शती के अन्तिम में हुए हैं । उत्तर पुराण के रचयिता गुणभद्र, जिनसेन के शिष्य थे और उन्होंने भी जिनसेन के अपूर्ण महापुराण को पूर्ण किया था । यह दशवीं शती के प्रारम्भ के विद्वान थे उस समय की मुनि परम्परा में ज्ञान की कैसी अद्भुतउपासना थी ! पद्मचरित या पद्मपुराण संस्कृत पद्मचरित दिगम्बर कथा साहित्य में बहुत प्राचीन ग्रन्थ है । ग्रन्थ बलभद्र पद्म (राम) तथा आठवे नारायण लक्ष्मण है । Jain Education International कथानायक आठवे दोनों ही व्यक्ति जन जन के श्रद्धा-भाजन है, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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