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________________ ४४ ४५ ४६ ४७ ४८ ४९ ५० ५१ ५२ पुराण नाम हरिवंश पुराण 127 33 "" Jain Education International "" "" 23 39 " (अपभ्रंश) 16 (अपभ्रंश) (अपभ्रंश) दिगम्बर जैन पुराण साहित्य कर्ता पुन्नाटसंघीय जिनसेन स्वयंभू देव चतुर्मुख देव ब्र. जिनदास भ. यशकीर्ति भ. श्रुतकीर्ति कवि रइधू भ. धर्म कवि रामचन्द्र १८५ रचना संवत शकसंवत ७०५ (वि. सं. ८४० ) १५-१६ शती १५०७ १५५२ १५-१६ शती ( इनके अतिरिक्त चरित ग्रन्थ हैं जिनकी संख्या पुराणों की संख्या से अधिक है और जिनमें 'वराङ्ग चरित', 'जिनद चरित', 'जसदर चरिऊ', णायकुमार चरिउ ' आदि कितने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ सम्मिलित हैं। पुराणों की उक्त सूचि में रविषेण का पद्मपुराण, जिनसेन का महापुराण, गुणभद्र का उत्तर पुराण और पुन्नाटसंघीय जिनसेन का हरिवंश पुराण सर्वश्रेष्ठ पुराण कहे जाते हैं । इनमें पुराण का पूर्ण लक्षण घटित होता है । इनकी रचना पुराण और काव्य दोनों की शैली से की गई है, इनकी अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं जो अध्ययन के समय पाठक का चित्त अपनी ओर बलात् आकृष्ट कर लेती है । For Private & Personal Use Only १६७१ १५६० के पूर्व जैन पुराणों का उद्गम : यति वृषभाचार्यने ‘तिलोय पण्णत्ति' के चतुर्थ अधिकार में तीर्थंकरों के माता पिता के नाम, जन्म नगरी, पन्चकल्याणक तिथि अन्तराल, आदि कितनी ही आवश्यक वस्तुओं का संकलन किया है। जान पडता है कि हमारे वर्तमान पुराणकारों ने अधिकांश उस आधार को दृष्टिगत रखकर पुराणों की रचनाएं की हैं। पुराणों में अधिकतर त्रेसठ शलाका पुरुषों का चरित्र चित्रण है । प्रसंगवश अन्य पुरुषों का भी चरित्र चित्रण हुआ है । इन पुराणों की खास विशेषता यह है कि इनमें यद्यपि काव्य शैली का आश्रय लिया गया है तथापि इतिवृत्त की प्रामाणिकता की ओर पर्याप्त दृष्टि रखी गई है । उदाहरण के लिए 'रामचरित' ले लिजिए । रामचरित पर प्रकाश डालनेवाला एक ग्रन्थ ' वाल्मीकि रामायण' है और दूसरा ग्रन्थ रविषेण का ‘पद्मचरित ' है। दोनों का तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन करने पर इसका तत्काल स्पष्ट अनुभव होता है कि वाल्मीकि ने कहां कृत्रिमता लाई है। श्री डॉक्टर हरिसत्य भट्टाचार्य, एम्. ए., पीएच्. डी. ने 'पौराणिक जैन इतिहास' शीर्षक से एक लेख ' वर्णी अभिनन्दन ग्रन्थ ' में दिया है उसमें उन्होंने जगह जगह २४ www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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