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________________ दिगम्बर जैन पुराण साहित्य पं. पन्नालालजी जैन, साहित्याचार्य, सागर भारतीय धर्मग्रंथों में पुराण शब्द का प्रयोग इतिहास के साथ आता है। कितने ही लोगों ने इतिहास और पुराण को पञ्चम वेद माना है। चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में इतिहास की गणना अथर्ववेद में की है और इतिहास में इतिवृत, पुराण, आख्यायिका, उदाहरण, धर्मशास्त्र तथा अर्थशास्त्र का समावेश किया है इससे यह सिद्ध होता है कि इतिहास और पुराण दोनों ही विभिन्न हैं । इतिवृत का उल्लेख समान होने पर भी दोनों अपनी विशेषता रखते हैं । कोषकारों ने पुराण का लक्षण निम्न प्रकार माना है जिसमें सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंश परम्पराओं का वर्णन हो वह पुराण है। सर्ग प्रतिसर्ग आदि पुराण के पांच लक्षण हैं । इतिवृत्त केवल घटित घटनाओं का उल्लेख करता है; परन्तु पुराण महापुरुषों की घटित घटनाओं उल्लेख करता हुआ उनसे प्राप्य फलाफल, पुण्य-पाप का भी वर्णन करता है, तथा साथ ही व्यक्ति के चरित्र निर्माण की अपेक्षा बीच बीच में नैतिक और धार्मिक भावनाओं का भी प्रदर्शन करता है। इतिवृत्त में केवल वर्तमान कालिक घटनाओं का उल्लेख रहता है, परंतु पुराण में नायक के अतीत अनागत भावों का भी उल्लेख रहता है और वह इसलिये कि जनसाधारण समझ सकें कि महापुरुष कैसे बना जा सकता है ? अवनत से उन्नत बनने के लिये क्या क्या त्याग और तपस्याएं करनी पडती है ? मनुष्य के जीवन-निर्माण में पुराण का बडा ही महत्वपूर्ण स्थान है। यही कारण है कि उसमें जनसाधारण की श्रद्धा आज भी यथापूर्व अक्षुण्ण है। जैनेतर समाज का पुराणसाहित्य बहुत विस्तृत है। वहां १८ पुराण माने गये हैं जिनके नाम निम्न प्रकार है १ मत्स्य पुराण, २ मार्कण्डेय पुराण, ३ भागवत पुराण, ४ भविष्य पुराण, ५ ब्रह्माण्ड पुराण, ६ ब्रह्मवैवर्त पुराण, ७ ब्राह्म पुराण, ८ वामन पुराण, ९ वराह पुराण, १० विष्णु पुराण, ११ वायु व शिव पुराण, १२ अग्नि पुराण, १३ नारद पुराण, १४ पद्म पुराण, १५ लिङ्ग पुराण, १६ गरूड पुराण, १७ कूर्म पुराण और १८ स्कन्द पुराण । ये अठारह महापुराण कहलाते हैं। इनके सिवाय गरुडपुराण में १८ उपपुराणों का भी उल्लेख आया है जो कि निम्न प्रकार है—१ सनत्कुमार, २ नारसिंह, ३ स्कान्द, ४ शिवधर्म, ५ आश्चर्य, ६ नारदीय, ७ कापिल, ८ वामन, ९ ओशनस, १० ब्रह्माण्ड, ११ वारुण, १२ कालिका, १३ माहेश्वर, १४ साम्ब, १५ सौर, १६ परीशर, १७ मारीच और १८ भार्गव । १८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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