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________________ परमात्म-प्रकाश और उसके रचयिता श्रीमान् पं. प्रकाशजी हितैषी शास्त्री, देहली संपादक, सन्मति-संदेश श्रमण संस्कृति के दर्शन और साहित्य में जो एकात्म भाव लक्षित होता है, उसका मूल कारण इसकी अध्यात्म-विद्या है। यह विद्या सनातन एवं धर्म की अंतःप्राण है। इसमें आत्मिक अलौकिक वृत्तियों का प्रतिष्ठान है। निर्विकल्पात्मक सहज-सहज आत्मानंद की उपलब्धि इसका लक्ष है। जगत् का प्राणि यद्यपि सुखशांति के लिये लालायित है किन्तु भ्रान्तिवश उससे दूर भागता रहा है। उस सहजानंद को प्राप्त स्वानुभवी संतों ने विश्वकल्याण के लिये उस मार्ग का प्रदर्शन किया है जो सदा उनका उपास्य रहा है। यही इसका वर्ण्य विषय है। इस अध्यात्मिक सन्त परम्परा में योगीन्दु देव का महत्व पूर्ण स्थान है। उनके रचे हुए अनेक आध्यात्मिक ग्रन्थों में से 'परमात्म-प्रकाश' ग्रन्थ प्रमुख है। जैसा कि इसके नाम से ही विदित है, इस ग्रन्थ में निरंजनदेव, आत्मा, परमात्मा, आत्मज्ञान, जीव की मोहदशा, इन्द्रियसुख और आत्मसुख, मोक्षतत्त्व और उससे विमुख जीवन की निरर्थकता, सिद्धि के भावशुद्धि, स्वभाव की उपासना, संसार की क्षणभंगुरता आदि अनेक आध्यात्मिक विषयों पर सरल और सरस भाषा में बडे ही सुन्दर ढंग से प्रतिपादन किया गया है। __निरंजन देव का निरूपण करते हुए आपने लिखा है, यह निरंजन देव ही परमात्मा है। इसको प्राप्त करने के लिये बाह्याचार की आवश्यकता नहीं। बाहर से वृत्ति हटाकर अन्तर में प्रवेश करने से ही अपने में परमात्मा प्राप्त हो सकता है। मानस सरोवर में हंस के समान निर्मल भाव में ही ब्रह्म का वास होता है। उसे देवालय, शिल्प अथवा चित्र में खोजना व्यर्थ है देउ ण देवले णवि सिलए णवि लिप्पई णवि चित्ति । अखउ णिरंजणु णाणमउ सिउ संठिय समचित्ति ॥ १२३॥ आत्म देव देवालय (मंदिर) में नहीं है, पाषाण की प्रतिमा में भी नहीं है, लेप तथा मूर्ति में भी नहीं है। वह देव अक्षय अविनाशी है, कर्म मल से रहित है, ज्ञान से पूर्ण है, ऐसा परमात्मा समभाव में ठहरा है। १७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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