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________________ श्रीमान् पं. टोडरमलजी और गोम्मटसार पं. नरेंद्रकुमार भिसीकर, न्यायतीर्थ, कारंजा यह ' गोम्मटसार ' ग्रंथ करणानुयोग में धवला षट्खंडागम सिद्धांत शास्त्रों का मंथन करके निकाला हुवा नवनीत सार है । इसका दूसरा नाम ' पंचसंग्रह ' भी रखा गया है । इसकी मूल गाथा सूत्र रचना सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य श्री नेमिचंद्र इनके द्वारा रचित है । इस ग्रंथपर दो संस्कृत टीकाएं रची गई हैं। पहली संस्कृत टीका ' जीवतत्त्वप्रदीपिका श्रीमान् पं. केशववर्णी द्वारा रची गई है। दूसरी ' मंदप्रबोधिनी' टीका श्रीमान् आचार्य अभयचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती द्वारा रची गई है। पहले संस्कृत टीका का शब्दशः हिंदी भाषानुवाद श्रीमान् पं. टोडरमलजी द्वारा किया गया है, जिसका नाम 6 'सम्यग्ज्ञान- चंद्रिका' रखा गया है । इस टीका के प्रारंभ में श्रीमान् पं. टोडरमलजी ने जो पीठिका लिखी है उसी का संक्षेपसार इस प्रबंध में संगृहीत किया है । कालदोष से दिनप्रतिदिन बुद्धी का क्षयोपशम मंद होता जा रहा है । जिनको संस्कृत भाषा का ज्ञान नहीं तथा अर्थसंदृष्टि अधिकारगत सूक्ष्म गणित विषय में जिनका प्रवेश होना कठीण है उन मंदबुद्धि मुमुक्षुजनों के लिये अंकसंदृष्टि द्वारा गणित के करण सूत्रों को सुलभ और सुगम करने का श्रीमान् पं. टोडरमलजी ने जो प्रयत्न किया है वह महान् उपकार है । 9 १. टीका रचना का मुख्य प्रयोजन श्रीमान् पं. टोडरमलजी ने सर्वप्रथम मुमुक्षु भव्य जीवों को इस ग्रंथ का सूक्ष्म अध्ययन करने की प्रेरणा की है । Jain Education International 1 प्रत्येक जीव दुःख से आकुलित होता हुआ सुख की अभिलाषा कर रहा है । आत्मा का हित मोक्ष है । मोक्ष के विना अन्य जो परसंयोगजनित है वह संसार है, विनश्वर है, दुःखमय है । मोक्ष आत्मा का निजस्वभाव है, अविनाशी है, अनंतसुखमय है । मोक्ष प्राप्ती का उपाय - सम्यग्दर्शन - सम्यग्ज्ञान, सम्यक् - चारित्र इनकी एकता तथा पूर्णता है । इनकी प्राप्ति जीवादिक सात तत्वों का यथार्थ श्रद्धान तथा समीचीन ज्ञान होने से होती है जीवादिक का स्वरूप जाने विना श्रद्धान होना आकाशफूल के समान असंभव है । ' आगमचेठ्ठा तदो जेठ्ठा' सम्यग्दर्शन के प्राप्ति के लिये आगमज्ञान इस पंचम काल में सर्वज्ञ के अभाव में प्रधान कारण माना गया है । १५४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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