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________________ महाबंध १३९ बन्ध करते हैं। किन्तु वे साता वेदनीय की अनुत्कृष्ट स्थिति का भी बन्ध करते हैं। उक्त कथन का यह आशय यहां समझना चाहिए। असातावेदनीय के द्विस्थान बन्धक जीव ज्ञानावरणीय की वहाँ सम्भव जघन्य स्थिति का बन्ध करते हैं । त्रिस्थान बन्धक जीव ज्ञानावरण की अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थिति का बन्ध करते हैं, क्योंकि इन के उत्कृष्ट संक्लेशरूप और अति विशुद्ध दोनों प्रकार के परिणाम नहीं पाये जाते । चतुस्थान बन्धक जीव असाता के ही उत्कृष्ट स्थिति बन्ध के साथ ज्ञानावरण का भी उत्कृष्ट स्थिति बन्ध करते हैं। यहाँ पर ज्ञानावरण कर्म की मुख्यता से उसके जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिबन्ध के स्वामी का विचार किया। उक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर इसी प्रकार अन्य सात कर्मों के विषय में भी जान लेना चाहिए। ७. एक जीव की अपेक्षाकाल-अन्तरप्ररूपणा स्थितिबन्ध चार प्रकार का है जघन्यस्थितिबन्ध, उत्कृष्टस्थितिबन्ध, अजघन्यस्थितिबन्ध और अनुकृष्टस्थितिबन्ध । हम पहले सादि आदि चारों अनुयोग द्वारों की अपेक्षा उत्कृष्ट आदि चारों स्थितिबन्धों का तथा स्वामित्व का उहापोह कर आये हैं उसे ध्यान में रखकर किस कर्म के किस स्थितिबन्ध का जघन्य और उत्कृष्ट काल कितना होता है यह एक जीव की अपेक्षा काल और अन्तरप्ररूपणा में बतलाया गया है। इसी प्रकार नाना जीवों की अपेक्षा क्षेत्र आदि शेष अनुयोग द्वारों का विचार कर लेना चाहिए। ८. भुजगार-पदनिक्षेप-वृद्धि अधिकार भुजगार स्थितिबन्ध-पिछले समय में कम स्थितिबन्ध होकर अगले समय में अधिक स्थिति का बन्ध होना भुजगार स्थितिबन्ध कहलाता है। पिछले समय में अधिक स्थितिबन्ध होकर अगले समय में कम स्थितिबन्ध होना अल्पतर स्थितिबन्ध कहलाता है। पिछले समय में जितना स्थितिबन्ध हुआ हो, अगले समय में उतना ही स्थितिबन्ध होना अवस्थित स्थितिबन्ध कहलाता है तथा पिछले समय में स्थितिबन्ध न होकर अगले समय में पुनः स्थितिबन्ध होने लगना अवक्तव्य स्थितिबन्ध कहलाता है। इस अनुयोगद्वार में इन चारों स्थितिबन्धों की अपेक्षा समुत्कीर्तना, स्वामित्व, एक जीव की अपेक्षा काल, अन्तर, नाना जीवों की अपेक्षा भंग विचय, भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्पबहुत्व इन अनुयोगद्वारों का आलम्बन लेकर ज्ञानावरणादि आठों कर्मों के स्थितिबन्ध का विचार किया गया है। पदनिक्षेप-भुजगार विशेष को पदनिक्षेप कहते हैं। इसमें स्थितिबन्ध की उत्कृष्ट वृद्धि, उत्कृष्ट हानि और उत्कृष्ट अवस्थान तथा जघन्य वृद्धि, जघन्य हानि और जघन्य अवस्थान इन छह पदों द्वारा समुत्कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व इन तीन अनुयोग द्वारों का आलम्बन, लेकर स्थितिबन्ध का विचार किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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