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________________ ११४ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ के वीस अर्थाधिकार हैं। उनमें से तीसरे पाहुड का नाम 'पेज्जदोस पाहुड' है। इसे गौतम गणधरने सोलह हजार मध्यम पदों में रचाया, जिनके अक्षरों का परिमाण दो कोडाकोडी, इकसठ लाख, सत्तावनहजार दो सौ बानवे करोड, बासठ लाख आठ हजार था। इतने महान् विस्तृत पेज्जदोस पाहुड का सार गुणधराचार्य ने केवल २३३ गाथाओं में निबद्ध किया, इससे ही प्रस्तुत ग्रंथ की महत्ता को आंका जा सकता है। आचार्य गुणधर के इस 'कसाय पाहुड' की रचना अति संक्षिप्त एवं बीज पदरूप थी और उसका अर्थबोध सहज गम्य नहीं था। अतः उसके ऊपर सर्वप्रथम आ. यतिवृषभ ने छह हजार श्लोक प्रमाण चूर्णि सूत्र रचे । चूर्णिकार ने अनेकों अनुयोगों का व्याख्यान न करके 'एवं णेदव्वं', या 'मणिदव्वं' कहकर व्याख्याताचार्यों के लिए संकेत किया कि इसी प्रकार वे शेष अनुयोगों का परिज्ञान अपने शिष्यों को करावें । यतिवृषभ के ऐसे संकेतिक स्थलों के स्पष्टीकरणार्थ उच्चारणाचार्य ने बारह हजार श्लोक प्रमाण उच्चारण वृत्ति का निर्माण किया। फिर भी अनेक स्थलों का अर्थ स्पष्ट नहीं होता था, अतः शामकुण्डाचार्य ने अडतालीस हजार श्लोक प्रमाण पद्धति नाम की टीका और तुम्बुलूचार्य ने चौरासी हजार श्लोक प्रमाण चूडामणि नाम की टीका रची। आ. वोरसेन-जिनसेन ने उपर्युक्त टीकाओं को हृदयंगम करके साठ हजार श्लोक प्रमाण जयधवला टीका रची है। जो आज उपलब्ध, ताम्रपत्रोत्कीर्ण एवं हिंदी अनुवाद के साथ प्रकाशित है। पद्धति और चिन्तामणि ये दोनों टीकाएं आज अनुपलब्ध हैं । गुणधराचार्य की सूत्र गाथाओं की गहनता को देखकर वीरसेनाचार्य ने 'एदा ओ अणंतत्थगन्मियाओ' कहकर उन्हें अनन्त अर्थ से गर्भित कहा है। कसाय पाहुड के १५ अधिकार हैं। इनके विषय में गुणधर यतिवृषभ और वीरसेन के मत से थोडा मतभेद है जो इस प्रकार है। संख्या गुणधर-सम्मत यतिवृषभ-सम्मत वीरसेन-सम्मत १ पज्जदोस विभक्ति २ स्थिति विभक्ति पेज्जदोस विभक्ति प्रकृति विभक्ति पेज्जदोस विभक्ति स्थिति अनुभाग विभक्ति (प्रकृति-प्रदेश विभक्ति क्षीणाक्षीण और स्थित्यन्तिक) बन्ध संक्रम स्थिति विभक्ति अनुभाग विभक्ति ३ अनुभाग विभक्ति ४ बन्ध (प्रदेश विभक्ति क्षीणाक्षीण और स्थित्यन्तिक) ५ संक्रम उदय प्रदेश विभक्ति, क्षीणाक्षीण और स्थित्यन्तिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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