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________________ ११० आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ उसमें आदिम-छेद (२७) के अर्धभाग (२५) से गुणित प्रति राशि (६४) अर्थात (२०४ ६४ = ८६४ ) का भाग देने पर इच्छित संकलना का प्रमाण १८९६ प्राप्त होता है। ___ श्री वीरसेन आचार्य ने इस प्रकार के अनेकों करणसूत्र ( Formula ) धवल पुस्तक ३१४ आदि में लिखे हैं। किन्तु कहीं कहीं पर उनके अनुवाद में भूल हुई है, क्योंकि अनुवादक विद्वत् मंडल विशेष गणितज्ञ नहीं था। यदि पुनरावृत्ति में गणित के विशेषज्ञों की साह्यताके करणसूत्र का ठीक ठीक अनुवाद किया जाय तो उत्तम होगा। श्री वीरसेन आचार्य ने 'सव्व सप्पडिक्स्खा ' अर्थात 'सर्व सप्रतिपक्ष ' है इस सिद्धान्त का पद पद पर प्रयोग किया है और इस सिद्धान्त पर बहुत जोर दिया है। सूक्ष्म जीव और साधारण जीव दृष्टिगोचर नहीं होते हैं इसलिये कुछ व्यक्ति ऐसे जीवों का सद्भाव स्वीकार नहीं करते । श्री वीरसेन आचार्य धवल, पुस्तक ६ में कहते हैं कि यदि सूक्ष्म जीवों का सद्भाव स्वीकार न किया जायगा तो उन (सूक्ष्म जीवों) के प्रतिपक्षी बादर जीवों के अभाव का प्रसंग आ जायगा, क्योंकि सर्वत्र प्रतिपक्ष है। यदि साधारण जीव (निगोदिया जीवों) का सद्भाव न माना जाय तो साधारण जीवों के प्रतिपक्षी प्रत्येक जीव के अभाव का प्रसंग आ जायगा । इसी प्रकार यदि जीव का अस्तित्व न स्वीकार किया जाय तो पुद्गल आदि अजीव द्रव्यों के अस्तित्व को अभाव का भी प्रसंग आ जायगा। धवल, पुस्तक १४, पृष्ठ २३३ पर एक प्रश्न उत्पन्न हुआ कि संसारी जीव राशि आयसे रहित है और व्यय सहित है, क्योंकि उसमें से मोक्ष को जाने वाले जीव उपलब्ध होते हैं, इसीलिए संसारी जीवों का अभाव ( समाप्त ) प्राप्त होता है ? श्री वीरसेन आचार्य शंका का समाधान करते हुए लिखते हैं। " जिन्होंने अतीत काल में कदाचित् भी त्रस परिणाम (पर्याय ) नहीं प्राप्त किया है, वैसे अनन्त जीव नियम से हैं।" " अत्थि अणंता जीवा जेहि ण पत्तो तसाण परिणामों । भाव कलंक अपउरा णिगोद वासं ण मुंचंति ॥१२७॥ [धवल, पु. १४, पृ. २३३] अन्यथा संसार में भव्य जीवों का अभाव प्राप्त होता है। उनका अभाव है नहीं, क्योंकि भव्य जीवों का अभाव होने पर अभव्य जीवों का भी अभाव प्राप्त होता है, और वह भी नहीं है, क्योंकि उनका (भव्य और अभव्य दोनों का) अभाव होने पर संसारी जीवों का अभाव प्राप्त होता है और यह भी नहीं है क्योंकि संसारी जीवों का अभाव होने पर असंसारी (मुक्त ) जीवों के भी अभाव का प्रसंग आता है। यदि कहा जावे कि संसारी जीवों का अभाव होने पर असंसारी ( मुक्त) जीवों का अभाव कैसे सम्भव है (क्योंकि संसारी सब जीवों के मुक्त अवस्था को प्राप्त हो जाने पर संसारी जीवों का अभाव तो सम्भव है किन्तु मुक्त जीवों का अभाव सम्भव नही है)। इसका समाधान यह है कि संसारी जीवों का Jain Education International www.jainelibrary.org | For Private & Personal Use Only
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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