SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाचार का अनुशीलन कुन्दकुन्द और मूलाचार इसमें तो सन्देह नहीं कि मूलाचार कुन्दकुन्द का ऋणी है किन्तु जैसा हम पहले लिख आये हैं वह हमें कुन्दकुन्दरचित प्रतीत नहीं होता । कुन्दकुन्द रचित नियमसार, प्रवचनसार, समयसार आदि ग्रन्थों में जो रचना वैशिष्टय है निरूपण की प्राञ्जलता है, अध्यात्म की पुट है वह मूलाचार में नहीं है, उनके प्रवचनसार के अन्त में आगत मुनिधर्म का वर्णन संक्षिप्त होनेपर भी कितना सारपूर्ण है यह बतलाने की आवश्यकता नहीं है । इसके साथ ही मूलाचार के किन्हीं वर्णनों में उनके साथ एकरूपता भी नहीं है। मूलाचार में जो सत्य और परिग्रह त्याग व्रत का स्वरूप कहा है वह मुनि के अनुरूप न होकर श्रावक के जैसा लगता है । यथा रागादीहिं असच्चं चत्ता परतापसच्चवयणुत्तिं । सुत्तत्त्थाणविकहणे अयघावयणुज्झणं सच्चं ॥ अर्थात् राग आदि के वश से असत्य न बोले, जिससे दूसरे को सन्ताप हो ऐसा सत्य भी न बोले, सूत्र के अर्थ का अन्यथा कथन न करे या आचार्य के कथन में दोष न निकाले यह सत्य महाव्रत है। इसमें पर संतापकारी सत्य वचन भी न बोले यह गृहस्थ के उपयुक्त कथन है। मुनि के लिये तो भाषा समिति में ही यह गर्भित है । इसी से आचार्य कुन्दकुन्द ने नियमसार में कहा है रागेण व दोसण व मोहेण व मोसभासपरिणामं । जो पडिवज्जदि साहु सया विदियवयं होइ तस्सेव ।। जो साधु राग, द्वेष और मोह से झूठ बोलने के परिणामों को सदा के लिये छोड़ता है उसी के दूसरा व्रत होता है। इसमें जो झूठ बोलने के परिणाम का त्याग कराया है वह महत्त्वपूर्ण है और कुन्दकुन्द की वाणी के वैशिष्टय का सूचक है। मूलाचार में चतुर्थ व्रत का स्वरूप इस प्रकार कहा है--- मादुसुदाभगिणीवय दणित्थित्तियं च पडिरूवं । इत्थीकहादिणियती तिलोयपुज्ज हवे बंमं ॥८॥ वृद्धा. बाला और युवती स्त्री के रूप को देखकर माता, पुत्री और भगिनी के समान मानना तथा स्त्री कथा आदि का त्याग ब्रह्मचर्य है। इसके साथ नियमसार का कथन मिलाइये - इहूण इत्थिरूवं वंछाभावं णिवत्तदे तालु। मेहुणसण्णविवज्जिय परिणामो अहव तुरियपदं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy