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________________ पञ्चास्तिकाय समयसार धर्मद्रव्य और अधर्म द्रव्य ये दोनों द्रव्य वर्णरहित होने से दिखाई नहीं देते, रस रहित होने से रसना इन्द्रिय भी नहीं जाने सकते, गंध और स्पर्श रहित होने से नासिका और स्पर्शन इन इन्द्रियों द्वारा भी इनका बोध नहीं हो सकता, पुद्गल की द्रव्यात्मक पर्याय न होने से ये कर्णेन्द्रिय के भी विषय नहीं हैं । इस प्रकार हमारे ज्ञान के लिए साधनभूत पांचों इन्द्रियों इसे जानने में समर्थ नहीं हैं । बहुत से लोग उन वस्तुओं के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं करते जो उनके ऐन्द्रिय ज्ञान में नहीं आते । पर ऐसी मान्यता गलत है जो हमारे ज्ञान में न आने पर अन्य किसी के ज्ञान में आवे वह भी मान्य करना अनिवार्य हो जाता है । १९ ये दोनों द्रव्य समस्त लोकाकाश में भरे हैं । ये संख्यायें १-१ है : प्रदेशों की संख्या इन की असंख्य है आकार लोकाकाश के बराबर है । समस्त जीव पुद्गल इनके अन्तर्गत है । इनसे बाहिर कोई जीव पुद्गल नहीं है । इसका कारण है कि ये लोक व्याप्ति द्रव्य है । यद्यपि इनमें भी द्रव्य का ' गुणपर्ययवद्द्द्रव्यम्' यह लक्षण है अतः अनन्तानन्त अगुरुलघु गुणों की हानि वृद्धिरूप पर्याय परिणमन अन्य द्रव्यों की तरह इन दोनों में भी पाया जाता है तथापि इनका दृष्टि में आनेवाला कार्य निम्न प्रकार है । जीव पुद्गल क्रियावान् द्रव्य है । ये क्रिया ( देश से देशान्तरगमन) करते हैं इस गमन क्रिया का माध्यम मछली के गमन में जल की तरह धर्मद्रव्य है । तथा गमन करके पुनः रुकने की क्रिया का माध्यम अधर्म द्रव्य है । इस तरह इन दोनों द्रव्यों की उपयोगिता चलने और रुकने में सहायता देना है । यहां सहायता का अर्थ प्रेरणा नहीं है । किन्तु ये दोनों उदासीन कारण हैं । चलना और रुकना पदार्थ अपनी योग्यता पर स्वतंत्रता से करते हैं, परन्तु उनकी उक्त क्रियाएं इन द्रव्यों की माध्यम बनाए बिना नहीं होती । जैसे वृद्ध पुरुषों को लकडी चलाती नहीं है पर उसके बिना वह चल नहीं पाता । लाठी का अवलंब करके भी चलना उसे स्वयं पडता है जो उसकी योग्यता पर निर्भर है । धर्म द्रव्य अधर्म द्रव्य के इतने ही कार्य देखने में आते है ऐसी बात नहीं है किन्तु समस्त पुद्गल द्रव्योंके विविध आकार तथा जीवके संस्थान बनने में धर्म अधर्म द्रव्य की उपयोगिता देखी जाती है । यदि आप किसी बिन्दु ( ० ) से आगे बढेंगे तो धर्म द्रव्य की सहायतासे और वह बिन्दु बनानेवाली कलम की क्रिया जो धर्म द्रव्य के आधार पर होगी रेखा बन जायगी । इस क्रिया में आप प्रारंभ में बिन्दु और अंत में बिन्दु मध्य में रेखा देखते है । प्रथम बिन्दु से कलम ने क्रिया की और रेखा बनना प्रारंभ हुआ और अधर्म द्रव्य को अवलंबन लेकर कलम में रुकने की क्रिया की कि वहाँ २ बिन्दुपर रेखा रुक गई । इस तरह धर्म द्रव्य के आधार पर कलम की गति और अधर्म द्रव्य के आधार पर उस गतिका रुकना हुआ फलतः आद्यन्तवान रेखा बन गई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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