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________________ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ इसका अलभ्य संग्रह संस्था के पास है। वे ग्रंथ के पुनर्मुद्रण के समय उपयुक्त होते हैं । ११०० फोटो लिए गये और संस्था को उसका खर्च ११००० रु. आया। फोटो का कार्य समाप्त होते समय आचार्यश्री की मंत्रीजी के नाम तार और पत्र से आज्ञा आई कि वहां से मैसूर जावे तथा कडी धूप, वर्षा, थंडी, तुफान आदि के कारण श्रवणबेलगोला स्थित महामूर्तिपर छेद दिख रहे हैं वैसा आगे न हो इस कारण महामूर्तिपर छत्र करने की सरकार से अनुज्ञा प्राप्त करना तथा ख्यातनाम इंजिनिअर से खर्चे का अंदाजा भी लाना । आदेशानुसार मंगलोर जाकर श्री नेमीसागरजी भट्टारक, वकील श्री जिनराजय्या के सलाह से, बेंगलोर के संस्कृत महाविद्यालय के प्रिन्सिपल श्री. धरणेन्द्रय्या के साथ रिटायर्ड रेव्हेन्यु कमिश्नर एम. सी. लक्ष्मीपती से चर्चा की। उन्होंने वर्तमान रेव्हेन्यु कमिश्नर मि. शेषाद्री, मैसूर सरकार के, आर्किटेक्ट इंजिनिअर एस्. एस्. लक्ष्मीनरसिय्या आदि सरकारी अफसरों से मिलन का सुझाव दिया। उनके साथ विचारविमर्श हुआ। इसमें पं. शांतिराज शास्त्री, श्री. शांतिराजय्या, श्री. चंद्रय्या, हेगडे बंधु इनका सहयोग मिला । ' मध्यवर्ति सरकार इसका इलाज करनेवाली है, मूर्ति के ऊपर छत्र बनाने से मूर्ति के सब शरीरपर हवादिक के विषमता के कारण उसकी आयु घट जावेगी। यह कार्य महामूर्ति बनानेवालों के इच्छा के विरुद्ध होगा, मूर्ति चारों तरफ से खुली रहने से ही दीर्घकाल तक टिकेगी तथा सरकार आपको अनुमति नहीं देगी' ऐसा विचारविमर्श होने से उसका समाचार महाराजश्री को भेजा गया। बाद में आच्छादन छत्र बनाने का विचार स्थगित हुआ। वि. सं. २००१ में विद्यावाचस्पति पं. खुबचंद्रजी शास्त्री के जिम्मेदारी पर उनके निगराणी में बंबई के निर्णयसागर प्रेस में श्रीधवल ग्रंथ की छपाई का कार्य प्रारंभ हुआ। मा. पंडितजी की सेवा विनावेतन प्राप्त हुई। आधे से अधिक छपाई होने के उपरान्त छपाई तुरन्त पूरी हो इस दृष्टि से सं. २००२ में सिद्धान्तशास्त्री पं. पन्नालालजी सोनी के देखभाल में सोलापुर के कल्याण प्रेस में उक्त कार्य साडे तीन वर्ष में पूरा हुआ। २६०० पन्नों के धवला का संपादन, संशोधन, छपाई आदि के लिए ३०००० रु. धनराशि खर्च हुअी। श्रीधवल ग्रंथ के छपाई के साथ छपे हुए पृष्ठों के ताम्रपट का कार्य उसी समय बंबई के श्रीपाद प्रोसेस वर्क्स में चलता रहा । श्रीधवल के पत्रों के आकार के ताम्रपत्र बनाने में २१००० रुपये खर्च हुआ। इस तरह सिद्धान्त ग्रन्थों के जीर्णोद्धार की कल्पना आचार्य श्री के मन में स्फुरित होने के चार वर्ष बाद श्रीधवल का मुद्रण तथा ताम्रपट का कार्य पूरा हुआ। संशोधित मुद्रित प्रत व ताम्रपट पू. आचार्य श्री को बडे समारोह के साथ अर्पण करने का निश्चय हुआ। किन्तु उस समय पू. आचार्य महाराज बंबई सरकार को हरिजन मंदिर प्रवेश कानून में जैनधर्म और संस्कृति में विरोधी होने से, जैनधर्म की स्वतंत्रता के ऊपर आघात करनेवाला होने से वह जैन समाज को लागू न हो इस दृष्टि से आहारत्याग, जपजाप्यादि तपानुष्ठान में लगे हुए थे। इसलिए समारोह की कल्पना स्थगित करके वि. सं. २००६ में गजपंथाजी क्षेत्र के वार्षिक सभा के अवसरपर श्री शेठ संघपति गेंदनमलजी के शुभ हस्ते भक्तिभाव से समर्पण किया गया । ___ सोलापुर की आबोहवा श्री. पं. पन्नालालजी सोनी के स्वास्थ्य के अनुकूल न होने से वे ब्यावर गये। वहां उनके जिम्मेदारीपर जयधवला का छपाई कार्य शुरू हुआ। वहां १९६४ पृष्ठ छपने के बाद शेष ३३६ पृष्ठों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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