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________________ स्मृति-मंजूषा ९७ उन्हें लेना थे । मध्य पारणा के समय मेरे सौभाग्य से वे मेरे द्वारा ही पडिगाहे गए। उस समय महाराज श्री ने समस्त रसों का तथा समस्त सचित्त फलादि का भी त्याग कर रखा था। केवल बिना नमक उबली डाल और रोटी रुखी ये दो चीजें ही आहार में लेकर वे पारणा करेंगे, पश्चात ९ उपवास लेंगे इस स्थिति में कहीं कुछ अन्तराय आ जाय तो क्या होगा ? इस शंका के मन में उठते ही मेरा शरीर पसीना२ होगया, मुझे चक्कर सा आने लगा, मैं आहार न दे सका। मेरी दुरवस्था का मानकर मेरी पत्नी ने साहस दिया और फलटण के वकील साहब तलकचंद शाह को उन्हें बुलाकर उनका सहयोग लेकर महाराज को निरंतराय आहार दिए । अन्त में खडा होकर २-३ ग्लास जल मैंने भी दिया । सर्व रसत्याग तप ललितपुर में एक सज्जन ने आचार्य श्री से चातुर्मास के प्रारंभ के प्रथम या द्वितीय सप्ताह में एक दिन यह आलोचना की कि महाराज यह प्रान्त तो गरीबों का है, और महाराजों की आहारों में अनार, मोसम्मी आदि फलोंका बडा भारी खर्च है । इस प्रदेश में ये सब दिल्ली से मंगाये जाते हैं। महाराज श्री ने उसी समय समस्त साधु संघ को बुलाया और उक्त परिस्थिति को अवगत कराया तथा आदेश दिया की चातुर्मास में कोई साधु फलादि ग्रहण न करे साथ ही अन्य रसों में जो त्याग जिससे बने वह अवश्य त्याग करे। मै स्वयं फलादि त्याग के साथ सर्व रसों का त्याग करता हूँ। आदेशानुसार सभी संघ ने फलादिका चातुर्मास में सर्वथा त्याग किया तथा यथा योग्य अन्य रसों का भी त्याग किया। कोई किसी प्रकार की आलोचना करे, पर आचार्य श्री उसकी यथार्थता पर दृष्टि रखकर उसका लाभ उठाते थे । उसे बुरे रूपमें उन्होंने कभी ग्रहण नहीं किया । बैरिस्टर चंपतरायजी दिवंगत श्री बैरिस्टर चम्पतरायजी भी उस समय ललितपुर पधारे । वे निकट भविष्य में धर्म प्रचार हेतु इंग्लेंड जानेवाले थे। उस समय हवाई यात्राएँ नहीं थी। जल जहाजों से जाया जाता था । बैरिस्टर सा० को धर्म प्रचार की बडी लगन थी। वे अपने पवित्र आचार विचार की सुरक्षा के लिये अपना रसोईया साथ ले जाते थे। स्वयं के खर्च पर विदेशों में धर्म प्रचार करते थे। कभी किसी व्यक्ति या संस्था से उन्होंने आवागमन का खर्च भी नहीं लिया। आचार्यश्री के दर्शनार्थ वे पधारे थे। वे कहते थे कि इतनी दूर की यात्रा है। जीवन का भरोसा नहीं अतः मेरा इरादा है कि यहाँ आचार्य संघ के तथा जबलपुर में चतुर्मास कर रहे श्री १०८ आचार्य सूर्यसागरजी के पुण्य दर्शन कर बाद वहीं से इंग्लैंड चला जाऊं। स्थिति ऐसी होनेपर भी कुछ लोग उनके विरुद्ध आचार्य संघ में मिथ्या भ्रांत धारणाएं फैलाते थे। उस समय भी यही हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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