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________________ || श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ५८ : ब्रह्मचारी लालजी महाराज (वैदिक) के प्रयत्न से आपने सार्वजनिक प्रवचन जोधपुर के सरदार मार्केट (घंटाघर) में अहिंसा के महत्व पर फरमाया जिसका श्रोताओं पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। जोधपुर से आप झालामंड होते हुए कांकेराव पधारे। वहाँ ब्राह्मणों की बारात आई हई थी। उन्होंने महाराजश्री का नाम सुना तो अत्याग्रह करके व्याख्यान करवाया और बहुत प्रशंसा की। कांकेराव से विहार कर विशालपुर बिलाड़े होते हुए ब्यावर पधारे। वहाँ कोशीथल निवासी स्व० सेठ श्री जवाहरलालजी कोठारी के पुत्र प्यारचन्द, बक्तावरमल और उनकी माता कंकूबाई तीनों दीक्षार्थी थे । ब्यावर श्रीसंघ ने फाल्गुन शुक्ला ३ के शुभदिन बाहर गांवों के श्री संघों को आमंत्रित करके दीक्षा उत्सव किया। दोनों भाई जैन दिवाकरजी महाराज के शिष्य बने एवं कंकूबाई श्री महासती धापूजी महाराज की शिष्या बनीं। उस समय ब्यावर में दिगम्बर जैन महासभा एवं खंडेलवाल जैन महासभा के अधिवेशन हो रहे थे। उसमें रायबहादुर सेठ कल्याणमल जी इन्दौर, श्री सेठ भैया साहब मन्दसौर, श्री सेठ रिख बचन्द जी उज्जैन-ये सभी दिगम्बर बन्ध आये थे। जैसे ही उनको जैन दिवाकरजी के विराजमान होने की सूचना मिली, वे आपश्री के दर्शन करने आये। परन्तु महाराजश्री रायबहादुर श्री सेठ कुन्दनमलजी कोठारी के बंगले पर ठहरे हुए थे अतः गुरुदेव के दर्शन न हो सके । ____ आप ब्यावर से आनन्दपुर (कालू) पुष्कर होते हुए अजमेर पधारे। वहाँ एक सार्वजनिक प्रवचन हुआ। उसमें साहबजादा-अब्दुल वाहिद खां (सेशन जज), मुन्शी हरविलासजी (रिटायर्ड जज, मेम्बर लेजिस्लेटिव कौन्सिल), मुन्शी शिवचरणजी (जज) आदि राज्य कर्मचारी एवं बहुत बड़ी संख्या में जनता ने भाग लिया । चातुर्मास के दिन निकट आ रहे थे। जोधपुर से चातुर्मास के लिए तार आ रहे थे। जयपुर के श्रावकगण भी विनती कर रहे थे। परन्तु विशेष लाभ की दृष्टि से ब्यावर श्रीसंघ को चातुर्मास की स्वीकृति मिली। अजमेर से विहार करके आपश्री रघुनाथप्रसादजी वकील की कोठी पर ठहरे। वहीं दो व्याख्यान दिये । वहाँ से किशनगढ़ पधारे। फिर नसीराबाद, मसूदा होते हुए ब्यावर पधारे। रास्ते के गांवों में अनेक राजपूतों ने शिकार, मदिरा और मांस आदि के त्याग किए। कोटा संप्रदाय के पं० श्री रामकुमारजी महाराज अपने शिष्यों सहित जैन दिवाकरजी महाराज की सेवा में ब्यावर चातुर्मास में रहे। उनकी भावना बहुत वर्षों से गुरुदेव की सेवा में रहकर विशेष ज्ञान-ध्यान सीखने की थी। उन्होंने इस चातुर्मास में जैन दिवाकरजी महाराज से ज्ञान सीखा। इस चातुर्मास में तपस्वी मुनि मयाचन्दजी महाराज ने ३७ दिन का उपवास गर्म पानी के आधार पर किया। भादवा सदी १० पूर्णाहुति का दिन था। इस दिन 'तपस्या का महत्व' पर आपका प्रभावशाली व्याख्यान हुआ। अनेक लोगों ने अनेक तरह के नियम लिए। तपस्याएँ भी खूब हुई। अनेक बहिनों ने चार प्रकार के स्कन्ध (हरी वनस्पति, कंदमूल एवं रात्रिभोजनत्याग, कच्चे पानी का त्याग और शीलवत पालन) की प्रतिज्ञाएं लीं। ब्यावर निवासी ऑनरेरी मजिस्ट्रेट दानवीर सेठ कुन्दनमलजी ने आगरा के जैन अनाथाश्रम को अनाथ बालकों के लिए चार महीने का पालन-पोषण व्यय अपनी ओर से देने का वचन दिया । पारणे के दिन १०१ बकरों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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