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________________ श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ सुखी होना कौन नहीं चाहता ? माधू खटीक कुछ क्षण तक सोचता रहा और फिर बोला “महाराज ! मैं अभी इस धन्धे को छोड़ने को तैयार हूँ । मेरे पास इस समय ३२ बकरे हैं । यदि कोई मुझे इन सबका लागत मूल्य भी दे दे तो उस धन से मैं कोई ऐसा काम कर लूंगा जिसमें हिंसा न हो " : ३७ : उदय : धर्म - दिवाकर का महाराजश्री कुछ क्षण तक सोचते रहे तो वही पुनः बोला "आप मेरा विश्वास करें। मैं परमात्मा और चन्द्र-सूर्य की साक्षी से अपनी प्रतिज्ञा का जीवन भर दृढ़तापूर्वक पालन करता रहूँगा । कभी भी जीव-हिंसा न करूंगा ।" श्रावक का एक परम कर्तव्य होता है—सदाचार की ओर बढ़ते हुए मानव की सहायता करना | आपके साथ विहार में श्री कन्हैयालाल जी और जुहारमल जी थे । उन पुण्यशाली श्रावकों ने वैसी ही व्यवस्था कर दी। माधू खटीक जीव-हिंसा से जीवन भर के लिए विरत हो गया । अब उसका हृदय परिवर्तन हो चुका था । वह कल्याण पथ को स्वीकार कर चुका था । वह सुखपूर्वक जीवन बिताने लगा । सत्य है संगः सतां किमु न मंगलमातनोति । साधुओं की संगति से कौन सा मंगल नहीं प्राप्त होता ? अर्थात् सभी प्रकार के मंगल प्राप्त हो जाते हैं । बीसवाँ चातुर्मास (सं० १९७२ ) : पालनपुर वहाँ से विचरण करते हुए महाराजश्री सींगोली, सरवाणिया, नीमच, मल्हारगढ़ होते हुए मन्दसौर पधारे । वहाँ गुरु श्री जवाहरलालजी महाराज तथा पूज्यश्री श्रीलालजी महाराज भी विराजमान थे । पालनपुर के श्रीसंघ ने वहाँ आकर चातुर्मास की प्रार्थना की । उन्हें स्वीकृति मिल गई । इस स्वीकृति के उपरान्त गंगापुर (मेवाड़) का श्रीसंघ अपने यहाँ पधारने की प्रार्थना करने आया । गंगापुर के श्रीसंघ ने निवेदन किया "हमारे यहाँ कुछ दिन बाद तेरापन्थी संघ का पाट (मर्यादा ) महोत्सव होने वाला I वहाँ कई विद्वान संत उपस्थित होंगे । यदि स्थानकवासी विद्वान संत भी पधारे तो बहुत उपकार होने की संभावना है ।" पूज्य श्रीलालजी महाराज को गंगापुर श्रीसंघ की यह बात उचित लगी। उन्होंने सस्नेह आपश्री की ओर देखकर कहा "मुनिजी ! आप वहाँ जाकर धर्म-प्रभावना करिए।" आपने विनय भरे शब्दों में निवेदन किया " पूज्य महाराज साहब ! ऐसे अवसर पर तो वहाँ आप जैसे दिग्गज आचार्य का पधारना अधिक उपयुक्त रहेगा।" पूज्यश्री ने प्रत्युत्तर देते हुए फरमाया "चौथमलजी ! आपके प्रवचन बहुत प्रभावशाली होते हैं । जैनियों के अतिरिक्त जैनेतर लोग भी हजारों की संख्या में उपस्थित होकर श्रद्धा और रुचि के साथ सुनते हैं । आप ही पधारिये ।" आपने पूज्यश्री का आदेश शिरोधार्य किया । गंगापुर पधारकर प्रवचन- गंगा आपके प्रवचनों की प्रशंसा होने लगी । वहाँ अनेक मोची परिवारों ने जैनधर्म अंगीकार Jain Education International For Private & Personal Use Only बहाई | किया । www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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