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________________ : ५२३ : मिथ्यात्व और सम्यक्त्व : एक तुलनात्मक विक्रेनी-जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्य (२०) अधिक मिथ्यात्व-आंशिक सत्य को उससे अधिक अथवा पूर्ण सत्य समझ लेना। (२१) विपरीत मिथ्यात्व-वस्तुतत्त्व को उसके विपरीत रूप में समझना । (२२) अक्रिया मिथ्यात्व-आत्मा को एकान्तिक रूप से अक्रिय मानना अथवा सिर्फ ज्ञान को महत्व देकर आचरण के प्रति उपेक्षा रखना। (२३) अज्ञान मिथ्यात्व-ज्ञान अथवा विवेक का अभाव । (२४) अविनय मिथ्यात्व-पूज्य वर्ग के प्रति समुचित सम्मान का प्रकट न करना अथवा उनकी आज्ञाओं का परिपालन नहीं करना। पूज्यबुद्धि और विनीतता का अभाव अविनय मिथ्यात्व है। (२५) असातना मिथ्यात्व-पूज्य वर्ग की निन्दा और आलोचना करना । अविनय और असातना को मिथ्यात्व इसलिए कहा गया है कि इनकी उपस्थिति से व्यक्ति गुरुजनों का यथोचित सम्मान नहीं करता है और फलस्वरूप उनसे मिलने वाले यथार्थता के बोध से वंचित रहता है। बौद्ध-दर्शन में मिथ्यात्व के प्रकार महात्मा बुद्ध ने सद्धर्म का विनाश करने वाली कुछ धारणाओं का विवेचन अंगुत्तरनिकाय में किया है जो कि जैन विचारणा के मिथ्यात्व की धारणा के बहुत निकट है। तुलना की दृष्टि से हम उनकी संक्षिप्त सूची प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसके आधार पर यह जाना जा सके कि दोनों विचार परम्पराओं का इस सम्बन्ध में कितना अधिक साम्य है। १. धर्म को अधर्म बताना। २. अधर्म को धर्म बताना। ३. भिक्षु अनियम (अविनय) को भिक्षुनियम (विनय) बताना । ४. भिक्षु नियम को अनियम बताना । ५. तथागत (बुद्ध) द्वारा अभाषित को तथागत भाषित कहना । ६. तथागत द्वारा भाषित को अभाषित कहना । ७. तथागत द्वारा अनाचरित को आचरित कहना । ८. तथागत द्वारा आचरित को अनाचरित कहना । ६. तथागत द्वारा नहीं बनाए हुए (अप्रज्ञप्त) नियम को प्रज्ञप्त कहना । १०. तथागत द्वारा प्रज्ञप्त (बनाए हुए नियम) को अप्रज्ञप्त बताना। ११. अनपराध को अपराध कहना । १२. अपराध को अनपराध कहना । १३. लघु अपराध को गुरु अपराध कहना । १४. गुरु अपराध को लघु अपराध कहना। १५. गम्भीर अपराध को अगम्भीर कहना । १६. अगम्भीर अपराध को गम्भीर कहना। १७. निविशेष अपराध को सविशेष कहना। १७ अंगुत्तरनिकाय १।१०-१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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