SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 505
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन दिवाकर.म्मृति-ग्रन्थ । श्री जैन दिवाकरजी के प्रिय पद्य : ४४८ ॥श्रीकृष्ण जन्म॥ ढाल-श्री कृष्ण मुरारी, प्रकटे अवतारी यादव वंश में ।टेक। गिरी सामने गज का देखो, उतर जाय अभिमान । चन्द्र चाँदनी वहाँ तक रहती, जब लग उगे न भान हो।६६३। मेंढक फिरे फुदकता जब तक, सर्प नजर नहीं आवे। शेर न देखे वहाँ तक मृगला, उछल फान्द लगावे हो ।६६४। जो ऊगे सो अस्त होय, और फूले सो कुम्हलाय । हर्ष शोक का जोड़ा जग में, देखत वय पलटाय हो ।९६५। पतिव्रता बालक और मुनिवर, जो कुछ शब्द उचारे। वाक्य इन्होंके निष्फल ना हों, जाने हैं जन सारे हो ।९६६। सज्जनों का दुख हरण करन को, हरी आप प्रकटावे । अधिक रवि की गरमी हो तब, मेघ वारी वर्षावे हो ।६६७। हरि देवकी के उर आये, स्वपना सात दिखावे । सिंह, सूर्य, गज, ध्वज, विमान, सर, अनल शिखा दरसावे हो ।९६८। चवी स्वर्ग से गंगदत्त का, जीव गर्भ में आया। स्वप्नों का हाल रानी ने सारा, पति को आन सुनाया ।६६९। कहे देवकी वसुदेव से, तुमने सुत मरवाया। जोर चला नहीं जरा इसी में, जीव बहुत दुख पाया हो ।६७०। बिना पुत्र सारा घर सूना, जैसे नमक बिन भात । पशु-पक्षी बच्चों को पाकर, वे भी मन हर्षात हो।९७१। इस बालक को आप बचा लो, रहेगा नाम तुमारो। स्वप्ने के अनुसार नाथजी, क्या नहीं हृदय विचारो हो ।९७२। नन्द अहीर की नार यशोदा, एक दिन मिलने आई। अपनी बीतक बात देवकी उसको सभी सुनाई।६७३। ('भगवान नेमिनाथ और पुरुषोत्तम श्रीकृष्णचन्द्र' चरित-काव्य के कुछ अंश, पृ. ६०; १९७० ई.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy