SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 487
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन दिवाकर.म्मृति-ग्रन्थ : श्री जैन दिवाकरजी के प्रिय पद्य : ४३०: - द्रौपदी की भीर आ हरी पीर, किये लम्बे चीर, महिमा तेरी। सुदर्शन सेठ, की सूली मेट, रखी श्रेष्ठ पेठ, नहीं देर करी । सुभद्रा नार, खोले द्वार, पुनः शिवकुमार, तापस केरी। दे सीता आवाज, रख परमेष्ठी लाज, मिटे अगन आज हआ जल फेरी। सोमा सवेर, नवकार फेर, झड़ गया जहर खुश हो गनका ॥२॥ अंजना के प्रान, बचाये आन, सोमप्रभ दिवान की पत राखी । जिनदत्ता तास, की पूरी आश, फिर रिखबदास, के हुआ साखी । अमरकुमार, की करी सार, मेणर्या नार, दी क्या आखी। जलते थे आग, नागन नाग, पारस वीतराग, की गति जांकी। रूप खरा चोर, दी स्वर्ग ठोर, जटाऊ पक्षी ओर, किया टनका ॥३॥ सती चन्दनबाल, की काटी जाल, और श्रीपाल का जहाज तिरा। पद्मश्री को साज, दे मेटी दाज, फेर वच्छराज का काज सरा। दिया शरणाचार, युगबाहु कुमार, हुआ देव अवतार सुरताज धरा। कलावती के हाथ, कीने निपात, णमोकार ध्यात, दिया साज खरा। पद्मावती जान, धरा तेरा ध्यान, दिया ऊँचा स्थान तापसवन का।।४।। नन्दवास ग्राम, में मगनीराम आ सर्प हराम ने डंक दिया । मात-तात तिवार, तेला को धार, फेरा णमोकार, दुःख बीत गया। लक्ष्मीचन्द विख्यात, रामपुरे जात, बीच सिंह बदजात, से भेंट भया। गिन नवकार, मारी ललकार, सिंह भगा जिंवार, निज काज किया। टेकचन्द की नार, सर्प डंक मार, लिया निश्चय धार, हटा विष तनका ।। फिर रंगूजी सती, की राखी रती, माता ने कथी, कानों ने सुनी। मगनीराम उजार, थी जोखम लार, मिले चोर चार, बचा आखी अनी। ऐसे पंचमकाल, काटे कई के जाल, करदे, निहाल, है तूही धनी । गुरु हीरालाल, मेरे दयाल, को नित्य खुशहाल, रख दिव्य गुनी। चौथमल छन्द, कथे कड़ी बन्द, करदे आनन्द, शिष्यवर्धन का ॥६॥ ३. शान्तिनाथ-स्तुति (तर्ज-पनजी की) साता कीजो जी श्री शान्तिनाथ प्रभु शिव सुख दीजो जी ।टेक। शान्तिनाथ है नाम आपको, सब ने साताकारी जी। तीन भवन में चावा प्रभुजी मृगी निवारी जी ।। आप सरीखा देव जगत में और नजर नहीं आवे जी। त्यागी ने वीतरागी मोटा, मुझ मन भावे जी ।२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy