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________________ : ३८६ : संस्कार-परिवर्तन, सुसंस्कार निर्माण में योगदान श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ इस प्रकार पूज्य श्री दिवाकरजी महाराज साहब के व्याख्यानों एवं प्रयासों से प्रभावित होकर खटीक, मोची, कलाल, चमार, भील, मुसलमान आदि कई पिछड़ी एवं ऋ र जाति के लोगों ने, जो कुसंस्कारों में पले, मद्य-मांस सेवन, चोरी, वेश्यावृत्ति आदि कुसंस्कारों का त्याग कर अपना जीवन निर्मल एवं संस्कारित बनाया। पीढ़ियों से चली आ रही दुष्प्रवृत्तियों का त्याग करना अत्यन्त दुष्कर है, फिर भी आपके प्रयासों से व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से दुष्प्रवृत्तियों का त्याग किया गया। जब इन पिछड़े वर्ग के निर्धन लोगों ने मद्य-मांस का त्याग किया तो उनके दैनिक जीवन में भी बहुत परिवर्तन हो गया एवं आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ। भारत वर्ष में देवी स्थानों पर बलि चढ़ाने की प्रथा बहुत अधिक प्रचलित थी। पूज्य श्री दिवाकरजी महाराज साहब इसे सहन नहीं कर सके तथा अपने अहिंसापूर्ण प्रवचनों एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के द्वारा अनेक स्थलों पर बलि बन्द करवा दी। नवरात्रि के दिनों में होने वाले इस घोर हिंसा काण्ड का इन्होंने विरोध किया तथा हर सम्भव प्रयास द्वारा इस हिंसक प्रवृत्ति एवं अन्धविश्वास को दूर किया। इस कार्य के लिए उन्होंने सम्बन्धित राजा-महाराजा, ठाकुर आदि का सहयोग प्राप्त किया तथा अगणित जीवों को अभय दान दिया। इससे लोगों में व्याप्त अन्धविश्वास भी दूर हुआ। सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य जो पूज्य श्री दिवाकरजी महाराज साहब ने किया वह था-उस वक्त के शासक वर्ग में व्याप्त कुसंस्कारों को हटाना । उस समय राजा-महाराजाओं एवं ठाकुरों का शासन था। वे शासन के मद में चूर थे तथा न्याय, अहिंसा तथा सदाचार को भूल चुके थे। जनता की खन-पसीने की गाढ़ी कमाई का पैसा तत्कालीन शासक वर्ग शिकार, सुरा, सुन्दरी तथा ऐशोआराम में बर्बाद करते थे। धन की बर्बादी के साथ-साथ वे अपना परलोक भी बिगाड़ते । महाराजश्री ने इस वर्ग के सुधार का दृढ़ संकल्प किया एवम् इन लोगों में त्याग-प्रात्याख्यान करवा कर अद्वितीय कार्य किया। जहां गुरुदेव पधारते वहीं शिकार, हिंसा, मांस, मदिरा के त्याग होते। इस वर्ग में ऐसे त्यागों का तांता-सा लग गया। उन सब त्यागों का उल्लेख यहां करना सम्भव नहीं है। मैं यहाँ पर बहुत संक्षेप में इस वर्ग में हुए सुधारों का उल्लेख करना चाहूंगा। ठाकुरों एवं राजा-महाराजाओं ने स्वयं भी त्याग किये तथा अपने शासित क्षेत्र में सार्वजनिक घोषणा द्वारा, हिंसा, बलि, मद्य-मांस विक्रय पर पूर्ण या आंशिक प्रतिबन्ध लगा दिया। जहाँ भी आप पधारे वहाँ के शासकों ने आपकी आज्ञा शिरोधार्य की तथा अपने राज्य में हिंसा आदि को रोकने के लिए आज्ञापत्र जारी किये। कैसा विचित्र प्रभाव था श्री दिवाकरजी महाराज साहब की वाणी में | जो राजा-महाराजा, राव, ठाकुर आदि सदियों से जिन वस्तुओं का उपयोग करते आ रहे थे तथा शासन के अभिमान में मदहोश थे, बेभान थे, उन्हें कौन समझा सकता था? समझाना तो दूर रहा परन्तु उन्हें कहने का साहस भी होना दुष्कर था। लेकिन दिवाकरजी महाराज ने इन राजा-महाराजाओं में व्याप्त कुसंस्कारों को हटाया तथा सुसंस्कारों का बीजारोपण किया। यही नहीं, शासक वर्ग के जिन व्यक्तियों ने प्रतिज्ञाएं लीं या घोषणाएँ करवाई, उन्होंने बहुत ही सम्मान सूचक शब्दों एवं विनम्र भावों का प्रयोग किया है। शासक वर्ग में सुसंस्कारों का निर्माण जितना पूज्य श्री दिवाकरजी १ ये घोषणा-पत्र इस ग्रन्थ के खण्ड ३, पृ० १३३ से १७२ तक देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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