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________________ :३८५ : राजनीतिक एवं सामाजिक परिप्रेक्ष्य में | श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ आपने अपने भागीरथ प्रयत्नों से स्वधर्मी वात्सल्य नाम पर प्रचलित मृत्यु-भोज को भी बन्द कराया। इस उपकार को जीवनभर मानव जाति नहीं भूल सकती। महाराजश्री के उपदेश केवल जैन समाज के लिए ही नहीं थे। राजनीतिज्ञों को भी उन्होंने काफी प्रभावित किया । आपके द्वारा प्रारम्भ किया गया पतितोद्धार आज अन्त्योदय के नाम से जाना जा रहा है। यह कार्य महाराजश्री ने ६५ वर्ष पूर्व ही प्रारम्भ कर दिया। हरिजनोद्धार कार्य आज एक राजनैतिक कार्यक्रम बन गया है, हर राजनैतिक पार्टी हरिजनोद्धार के नाम पर अपनी राजनैतिक रोटी सेंकने का, कार्य करने का प्रयत्ल किया जा रहा है जबकि वास्तविकता यह है कि कार्य राजनैतिक आधार पर करने से उसका उद्देश्य चुनाव तक सीमित रहता है जिसका ढिंढोरा ज्यादा पीटा जाता है, लेकिन कार्य कुछ भी नहीं होता है । सामाजिकोद्धार का कार्य निस्वार्थ भाव से करने पर ही वह कार्य ठोस होता है, वास्तविक रूप से सही कार्य होता है। महात्मा गांधी ने निस्वार्थ भाव से यह कार्य किया था, तो वे विश्वबन्धु हो गये हैं लेकिन उनके कार्य को एक राजनीतिक जामा पहनाया जा रहा है। महाराजश्री ने इस कार्यक्रम को स्वयं के बल, वाणी के चमत्कार के जरिये किया, जिसका प्रचार-प्रसार उन लोगों के तक ही रहा जिनका जीवन सुखी एवं सम्पन्न हो गया एवं सम्पूर्ण समाजों में प्रमुख स्थान मिलने लगा। महाराजश्री ने भगवान महावीर के सेवक के रूप में अहिंसा एवं अपरिग्रह के प्रचार-प्रसार में अपना जीवन बिताया। अहिंसा का सिद्धान्त आज विश्व के लिए भी आवश्यक बन गया है। अहिंसा का यह सिद्धान्त स्वतन्त्रता के संग्राम के समय भी अपनाया गया जिसमें अहिंसात्मक सत्याग्रह प्रमुख है। महाराजश्री के समय भारत ही क्या विश्व में राजतन्त्रीय प्रणाली थी जिन पर अंग्रेजों का प्रभाव था। महाराजश्री अंग्रेजों के कार्य से प्रसन्न नहीं थे। उन्होंने देखा कि अंग्रेजों के प्रभाव से भारतीय संस्कृति छिन्न-भिन्न होती जा रही है। प्रत्येक व्यक्ति पाश्चात्य संस्कृति को अपना रहा है अतः उन्होंने दुखित होकर कहा था "खेद है कि भारत के लोगों में अपनी संस्कृति, साहित्य, विज्ञान और कला के प्रति घोर उपेक्षावृत्ति उत्पन्न हो गयी है और इसी कारण बहुत-सी चमत्कार उत्पन्न करने वाली महत्वपूर्ण विद्याओं का लोप हो गया है। बची-खुची लुप्त हो रही हैं। यह देशवासियों के लिए गौरव की बात नहीं है । देश-भक्ति का सच्चा अर्थ यही है कि देश की संस्कृति को, साहित्य को, विज्ञान और कला को उन्नत और विकसित किया जाय ।"" वह भारतीयों की गुलामी से दुखी थे उनके मन में एक स्वतन्त्र भारत का नक्शा था। वे चाहते हर गरीब-अमीर स्वतन्त्र रहे एवं अपना जीविकोपार्जन करता रहे । उन्होंने कहा ___ "जो कोई दूसरे के अधिकार को कुचलते हैं वह देशद्रोही हैं और धर्म-विरोधी हैं। वह जनता के अविश्वास का पात्र बनता है और ईश्वर से विमुख होता है।" राष्ट्र को पूर्णतया समर्पित यह सच्चा साघु राष्ट्र के लिए चिंतित रहा। हमेशा जनता के दुःख-दर्द को दूर करने का प्रयत्न करता रहा । वह जानता था कि आज का शासक पथ-भ्रष्ट यानि १ दिवाकर दिव्य ज्योति भाग, ५, पृष्ठ २३३ २ दिवाकर दिव्य ज्योति भाग, ६, पृष्ठ २५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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