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________________ ॥ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : १०: बालक के जन्म पर पूरे परिवार में हर्ष-उल्लास छा गया। प्रतिकर्म किये गए । १२वें दिन विद्वान ब्राह्मणों ने ज्योतिष के अनुसार नाम बताया-चौथमल (चतुर्थ मल्ल)। नाम-विवेचन चौथ को ज्योतिष में रिक्ता तिथि माना जाता है। सांसारिक व्यवहार में भी यह तिथि अशुभ समझी जाती है। लेकिन जैनागमों में चारित्र को रिक्त कर कहा है-'चयरित्तकरं चारित्त" अर्थात कर्मों के चय, उपचय, संचय को रिक्त करने वाला चारित्र है। मोक्ष के मार्गों का वर्णन करते हुए आचार्यों ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र और चौथा मार्ग 'तप' गिनाया है। कहा है-भव कोड़ी संचियं कम्म तवसा निज्जरिज्जइ-कोटि जन्म के संचित कर्म तप से नष्ट हो जाते हैं। चौथा महाव्रत ब्रह्मचर्य पाँचों महाव्रतों का कवच माना गया है। संसार में बह्मचर्य ही सर्वोत्तम है क्योंकि ब्रह्मचर्य का अर्थ ही आत्मा में रमण करना है। धर्म के चार भेदों में चौथा भेद है 'भाव' । भाव ही मुख्य है। इसी के द्वारा मुक्ति की प्राप्त होती है। सांसारिक व्यापारिक जगत में भी 'भाव का महत्व सर्वोपरि है। भाव (मूल्य) ऊँचा जाने पर ही लाभ होता है। धर्ममार्ग में भी भाव (आत्मा के परिणाम) ऊर्ध्वमुखी होने से अतिशय ज्ञान-केवलज्ञान तथा मुक्ति की प्राप्ति होती है। चौदह गुणस्थानों में भी चौथा गुणस्थान सम्यक्त्व है। यही मोक्षमार्ग की आधारशिला है। मोक्षमार्ग का प्रारम्भ यहीं से होता है । इसी गुणस्थान में जीव सर्वप्रथम अपने स्वरूप का अनुभव करता है। प्राचीन कहावत है-'व्यक्ति पर नाम का प्रभाव अवश्य पड़ता है।' गुरुदेव चौथमल जी महाराज पर अपने नाम का कितना प्रभाव पड़ा, यह सर्वविदित है। उन्होंने चारित्र का पालन करके कर्मों के संचय को रिक्त किया, घोर तप किया, ब्रह्मचर्य का पालन किया और साधना की उच्च भावभूमि पर पहुंचे। इसलिए तो जन-जन के वन्दनीय हुए। उनका नाम स्मरण आते ही हृदय श्रद्धा से भर जाता है। जोधपुर के भाशुकवि पं० नित्यानंद जी ने उनके बारे में कहा था युगत्रये पूर्वमतीतपूर्वे जातास्तु जाता खलु धर्ममल्लाः । अयं चतुर्थो भवताच्चतुर्थे घाताति सृष्टोऽस्ति चतुर्थ मल्लः ॥ प्राचीन तीनों युगों में धर्मोपदेशक तथा धर्म प्रवर्तक हो गये हैं लेकिन आप इसी चतुर्थ युग में ऐसे प्रभावशाली पुरुष चतुर्थमल्ल (चौथमल) हैं। परिवार चौथमल जी महाराज के दो भाई और दो बहनें थीं। बड़े भाई का नाम कालूराम जी और छोटे भाई का नाम फतेहचन्द जी था । बड़ी बहन नवलबाई और छोटी बहन सुन्दरबाई थी। सुन्दरबाई का परिवार मंदसौर में रहता है। उनकी एक पुत्री जिसका बम्बई में विवाह हुआ वह बम्बई में ही रहती है। सबसे छोटी एक बहन और थी जिसका लघुवय में ही अवसान हो गया था। विद्या भगवती के अंक में समय गुजरने के साथ-साथ बालक चौथमल मां के अंक से उतरकर उसकी अंगुली पकड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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