SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 422
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ :३६६ : साहित्य में सत्यं शिवं सुन्दरं के संस्कर्ता श्री जैन दिवाकर साहित्य की आंशिक झांकी यद्यपि श्री जैन दिवाकरजी महाराज के समग्र साहित्य की पर्यालोचना के लिये एक स्वतन्त्र पुस्तक अपेक्षित है। अतः प्रस्तुत में उनके कुछेक विचारों का उल्लेख करके संतोष करना पड़ेगा। श्री जैन दिवाकर जी महाराज ने यथार्थ के धरातल पर आदर्श की स्थापना की है। उन्होंने अपने प्रवचनों और रचनाओं में मानव की उस नैसर्गिक प्रवृत्ति को दिखलाया है, जब वह प्रमाद के वश में होकर यही सोचता रहता है कि आज करे सो काल कर, काल करे सो परसों। जल्दी-जल्दी क्या करता है, अभी तो जीना है वरसों ।। इस मनोवृत्ति के कारण व्यक्ति न तो शुभ प्रवृत्तियों को करता है और न यह देखता है कि आज की होने वाली प्रत्येक क्रिया भविष्य में अपना फल अवश्य प्रदान करेगी। वह तो पाप कर्मों को करते हुए इन्द्रिय विषयों में रत रहते हुए यही सोचता है कि मुझसे बढ़कर कोई सुखी नहीं है । अपने स्वार्थ के लिये दूसरों के साथ छल-फरेब, धोखाधड़ी करने से नहीं चूकता है। ऐसा करते हुए भी यही सोचता है कि धर्म-साधना आदि बुढ़ापे में ही कर लेंगे और उस समय की जाने वाली उस साधना से बेड़ा पार, हो जायेगा। ऐसे लोगों को उनकी कमजोरियां बताने के साथ श्री जैन दिवाकरजी महाराज चेतावनी देते हुए एक यथार्थ सत्य के दर्शन कराते हैं और आदर्श स्थापित करते हैं 'बुढापा आने पर पुरुषार्थ थक जायेगा फिर आत्म-कल्याण नहीं कर सकेगा । जब झोंपड़ी में आग लग जाये और झोंपड़ी जलने लगे, उस समय तू कंआ खुदवाने बैठेगा तो क्या प्रयोजन सिद्ध होगा? समझदार और होशियार आदमी ऐसा नहीं करते हैं। वे तो पानी आने से पहले ही पाल बांध लेते हैं। तू बुढ़ापा आने के पहले ही परलोक का सामान जुटा ले, फिर जुटाना कठिन हो जायेगा । प्रमाद में यह महत्त्वपूर्ण समय नष्ट मत कर । -दिवाकर दिव्य ज्योति १३, पृ० १६२ उम्र बीतती जा रही है । क्षण-क्षण में पल-पल में वह कम हो रही है । तुझे ख्याल ही नहीं है। त समझ बैठा है कि मैं यहीं रहँगा। इस कारण गरीबों को कुचल रहा है, मसल रहा है। किन्तु समय आ रहा है कि तेरी सारी अकड़ निकल जायेगी। मस्ती काफूर हो जायेगी और तेरे सारे कृत्य ही तुझे पश्चात्ताप करने को विवश करेंगे-तू जान-बूझकर क्यों इस हालत में पड़ने को तैयार हो रहा है। अरे पहले ही चेतजा !""संमल, सोच और अपनी चाल-ढाल बदल दे । कुछ भलाई के काम कर!' -विवाकर दिव्य ज्योति १, पृ० १२५ व्यक्ति को अपने कु-कृत्यों पर आज नहीं तो कल पश्चात्ताप अवश्य करना पड़ता है। फिर भी वह पाप कर्मों में लगा रहता है और वह कैसे-कैसे और किन-किन पाप कर्मों में अपना अनमोल मनुष्य-भव खपा देता है। उसकी संक्षेप में झांकी दिखाते हुए पूज्य दिवाकरजी महाराज ने जो चित्रण किया है वह तो इतना सजीव है कि आज के युग में ऐसे चित्र पग-पग पर देखने को मिल जाते हैं। इससे सम्बन्धित एक लावनी के बोल हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy