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________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ । एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन :८: उद्भव : एक कल्पांकुर का जन्म-भूमि भारत की पुण्य धरा में मालव भूमि सदा से ही वीर-प्रसूता रही है। यहाँ अनेक कर्मवीरों ने जन्म लिया है तो धर्मवीरों ने भी इसे अपने जन्म से गौरवान्वित किया है। दशार्णपुरनरेश दर्शाणभद्र जैसे कर्म और आध्यात्मिक क्षेत्र में शुरवीर ने यहीं जन्म लिया था। विक्रमादित्य जैसे प्रबल प्रतापी, विद्या व्यसनी और प्रजावत्सल शासक भी इसी भूमि ने उत्पन्न किये। यह भूमि प्राकृतिक सुषमा और सम्पदा से भरपूर है । इसीलिए यहाँ की भूमि के लिए प्रचलित है-- मालव भमि गहन गम्भीर । डग-डग रोटी पग-पग नीर ।। इसी भूमि को पूज्यश्री मन्नालाल जी महाराज, पूज्यश्री जवाहरलालजी महाराज आदि अनेक मनीषी संत एवं तपस्वियों तथा महासती रंगूजी महाराज आदि अनेक महासतियों को जन्म देने का गौरव प्राप्त हुआ है। यहाँ उत्पन्न हुई अनेक विभूतियों से भारत का आध्यात्मिक वैभव चमका है। इस प्रदेश का एक नगर है 'नीमच'। नगर बहुत बड़ा तो नहीं है, लेकिन यह प्रसिद्ध प्राचीन काल से ही रहा है। यहाँ अनेक ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक स्थल है। ब्रिटिश शासन काल में यह सैनिक छावनी के रूप में प्रसिद्ध रहा है । इसकी भौगोलिक स्थिति २५० उत्तरी अक्षांश तथा ७५° पूर्वी देशान्तर पर है । ग्वालियर के सिन्धिया नरेश के शासन काल में यह राजपूताना-मालवा के सीमांत पर था। वर्तमान में यह नगर मध्य-प्रदेश में स्थित है। रेल्वे का प्रमुख स्टेशन है। जन्म वंश इसी नीमच नगर में ओसवाल जाति का एक चोरडिया परिवार का निवास था। यह परिवार कुल मर्यादा का पालन करने वाला था। इस परिवार क मुखिया-गृह स्वामी थे—गंगारामजी और इनकी धर्मपत्नी थी केसरबाई। पति-पत्नी दोनों ही आचार-निष्ठ, धर्मनिष्ठ सद्गृहस्थ थे । गंगारामजी का चरित्र गंगा के समान निर्मल था और केसरबाई के गुणों की महक केसर के समान ही संपूर्ण नगर में फैली हुई थी। गंगारामजी की आर्थिक स्थिति साधारण ही थी किन्तु उनके चारित्रिक गुणों के कारण उनकी नगर में प्रतिष्ठा बहुत अधिक थी। वे घी का व्यापार करते थे। इस व्यापार के अतिरिक्त उन्हें उत्तराधिकार में थोड़ी-सी जमीन, कुछ आम के वृक्ष और एक कूआ भी अपने पिता श्री ओंकारजी से मिला था। ओंकारजी दारूग्राम (ग्वालियर स्टेट) के ठाकुर साहब के यहाँ कामदार थे। किसी बात पर इनका ठाकुर साहब से मतभेद हो गया। मतभेद इतना बढ़ा कि मनमुटाव तक जा पहुंचा । ओंकारजी शान्तिप्रिय व्यक्ति थे । वे संघर्ष में न पड़े। उन्होंने जल में रहकर मगर से वैर रखना उचित न समझा । फलस्वरूप दारूग्राम छोड़कर नीमच आ बसे । यहीं गंगारामजी का जन्म और केसरबाई के साथ उनका पाणिग्रहण संस्कार हुआ । धार्मिक परिवार में धर्मनिष्ठ केसरबाई आ मिलीं। गंगाराम जी के घर साध-साध्वियों का आगमन होता रहता था। केसरबाई उनके दर्शन-वंदन करके बहुत हर्षित होतीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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