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________________ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । व्यक्तित्व की बहरंगी किरणें : ३३८ : आसीन हुए। वह वास्तव में एक आह्लादकारी अद्भुत दृश्य था। मुनिश्री श्रमण-धारा के एक तेजस्वी साधक थे जो सर्वतोभावेन मानवीय मूल्यों एवं उच्चादर्शों के प्रति समर्पित थे । अहिंसामूलक उनकी सम्पूर्ण प्रवृत्तियाँ मानवीय हित साधन हेतु समता भावपूर्वक होती थीं। उन्होंने ऊँच-नीच में भेद-भाव न रखते हुए सभी वर्गों के लोगों में समान रूप से भगवान महावीर की अमृतवाणी और श्रमण धर्म के सिद्धान्तों का प्रचार किया। उन्होंने समाज में घृणास्पद समझे जाने वाले मोची, चमार, कलाल, खटीक आदि निम्न जाति के लोगों तक अपना सन्देश पहुँचाया तथा उन्हें शराब, गांजा, भांग, तम्बाकू आदि के व्यसन से छुटकारा दिलाकर मांस-भक्षण और जीवहिंसा न करने की प्रेरणा दी। उन्होंने उन लोगों के जीवनस्तर को उन्नत बनाने और समाज में स्वाभिमानपूर्ण प्रतिष्ठित स्थान दिलाने के लिए जो भगीरथ प्रयास किया वह इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरांकित रहेगा। आपके पावन सन्देश एवं उपदेश से प्रेरणा लेने वालों में वेश्यावत्ति त्यागने वाली महिलाओं का भी एक वर्ग है। - आप श्रमण परम्परा के एक ऐसे सूर्य हैं जिसने समाज को आलोक दिया, दिशा दृष्टि प्रदान की और अपने सत्साहित्य के द्वारा प्रेरणाप्रद सन्देश दिया। विभिन्न स्थानों पर आयोजित अपने चातुर्मास काल में उन्होंने अपने सदुपदेशों के माध्यम से असंख्य लोगों का उद्धार किया। उनका जीवन इतना संयत, सदाचारपूर्ण एवं आडम्बरविहीन रहा कि उसने प्रायः सभी को प्रभावित किया। उन्होंने अहिंसा आदि का पालन इतनी सूक्ष्मता एवं सावधानी से किया कि उसे देखकर लोगों को आश्चर्य होता था। उनके व्रत-नियम कठोर होते हुए भी उदात्त थे। वे यद्यपि वाक्पटु थे और उनकी वाणी एवं वक्तृत्व शैली में गजब का सम्मोहन था, फिर भी उनकी वक्तृता में वाक्पटुता की अपेक्षा जीवन का यथार्थ ही अधिक छलकता था। एक ओर जीवन को ऊँचा उठाने वाला और नैतिकता का बोध कराने वाला उनका सन्देश और दूसरी ओर उनका अनुकरणीय आदर्शमय जीवन लोगों के हृदय पर गजब का प्रभाव डालता था । श्रमण सूर्य-श्री जैन दिवाकरजी की जीवनी एवं उनके जीवन के प्रेरक पावन प्रसंगों को पढ़ने से उनकी प्रवचन शक्ति एवं आकर्षण युक्त अद्भुत व्यक्तित्व का बोध तो सहज ही हो जाता है । मांस-मदिरा जैसे दुर्व्यसनों में फंसे हुए सैकड़ों-हजारों लोगों ने उनकी जादू भरी दिव्य वाणी से प्रभावित होकर सदा के लिए उन व्यसनों को छोड़ दिया--यह कोई साधारण बात नहीं है। जैन लोग यदि उनकी ओर आकृष्ट होते हैं तो इतना आश्चर्य नहीं होता, किन्तु जैनेतर जन उनके प्रभावशाली चुम्बकीय आकर्षण से बिधकर उनकी बात सुनता है और उस पर आचरण करता है तो सहज ही आश्चर्य होता है । यह उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व का ही परिणाम था कि तत्कालीन अनेक राजा-महाराजा उनके चरणों में नतमस्तक हुए और उन्होंने अपनी रियासतों में जीवहिंसा निषेध के आदेश जारी किये। इस प्रकार उनके प्रभाव से अनेकानेक निरीह पशु-पक्षियों को अभयदान मिला। उन्होंने मानव जाति के नैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्थान के लिए दिव्यता विभूषित एक देव दूत की भूमिका का निर्वाह किया। उन्होंने प्राणिमात्र की जो सेवा की है वह अविस्मरणीय है। हम चिरकाल तक उनके जीवन से, जो स्वयं ही एक दिव्य सन्देश है प्रेरणा लेते रहेंगे और सन्मार्ग पर चलने का उपक्रम करेंगे। उनका पावन सन्देश एवं अलौकिक ज्योतिःपुंज शताब्दियों तक हमारा पथ प्रदर्शन करता रहेगा। ऐसी अमर विभूति हमारे लिए सदा सर्वदा वन्दनीय है। उनके चरणों में शतशः वन्दनपूर्वक हमारा नमन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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