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________________ | श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ।। व्यक्तित्व की बहरंगी किरणें : ३३२: द्वारा जो आदर्श प्रस्तुत किए वे चिरकाल तक के लिए अक्षुण्ण और उपादेय बन गए । श्रमण वस्तुतः अपने ज्ञान और आचरण के द्वारा जन-मानस पर ऐसा अद्भुत प्रभाव डालते हैं कि उसे अपनी प्रवृत्तियाँ स्वतः ही घृणित प्रतीत होने लगती हैं। श्रमण की वाणी में जो ओज पर्ण एवं तेजस्वी देशना होती है उसे क्षुद्र मानव मात्र का अन्तःकरण अपनी प्रवृत्तियों के सन्दर्भ में लेकर जब आत्मालोचन का प्रयास करता है तो स्वतः ही उसे अपनी हीनता और कलुषित वृत्तियों का अहसास होने लगता है । वह वास्तविकता के निकट पहुँचता जाता है और हेय और एवं उपादेय का अन्तर स्पष्टतः जानने व समझने लगता है। यहीं से उसके आचरण एवं व्यवहार में परिवर्तन आने लगता है। श्रमण का आचरण स्वतः ही मनुष्य को अनुकरण की प्रेरणा देता है, फिर यदि श्रमण की वाणी उपदेश रूप में मुखरित होती है तो मनुष्य पर उसका प्रभाव क्यों नहीं पड़ेगा। परम श्रद्धय प्रातः स्मरणीय श्री जैन दिवाकरजी महाराज श्रमण-परम्परा की उन दिव्य विभूतियों में से एक हैं जिन्होंने भगवान जिनेन्द्र देव के पथ का अनुसरण करते हुए मानव-कल्याण को ही अपने जीवन में प्रमुखता दी । ज्ञान-साधना के द्वारा उन्होंने जहाँ अपनी आत्मा को उन्नत एवं विकसित किया वहाँ अपने सदुपदेशों द्वारा उन्होंने अनेकानेक मनुष्यों को कूमार्ग से हटाकर सन्मार्ग का अनुगामी बनाया। जिसे उन्होंने अपने जीवन में उतारकर स्वतः अनुभव किया। उसका ही उन्होंने दूसरों को आचरण करने का उपदेश दिया। लोगों के मन-मस्तिष्क पर इसका अनुकूल प्रभाव पड़ा और बुराइयाँ उनके जीवन से स्वतः ही दूर भागने लगी। मानव-जीवन में बुराइयों का प्रवेश जितना सरल है उनको निकालना उतना ही दुष्कर है। किन्तु जिसने एक बार भी श्री जैन दिवाकरजी महाराज साहब का प्रवचन सुना उसके जीवन से बुराइयों का पलायन स्वतः ही होने लगा। यह एक निर्विवाद तथ्य है कि जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज केवल समाज की ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण देश की एक महान, दिव्य एवं अलौकिक विभूति थे। उनका व्यक्तित्व अभूतपूर्व था जिसमें अद्भुत सहज आकर्षण क्षमता थी । वे श्रमण संस्कृति के महान् उपासक, भारत वर्ष के एक असाधारण सन्त और विश्व के अद्वितीय ज्योतिपुंज थे। इस देश की जनता के नैतिक स्तर को ऊँचा उठाने, जीवन को सादगी पूर्ण बनाने, विचारों में उच्चता लाने और अहिंसा का प्रचार-प्रसार करने में उन्होंने जो योगदान किया है वह असाधारण एवं अविस्मरणीय है। उनकी असाधारण एवं विलक्षण प्रतिभा ने न जाने कितने गिरे हए लोगों को उठाया और उनके पथ-भ्रष्ट जीवन को उन्नत बनाया। उनकी सहज स्वाभाविक सरलता ने न जाने कितने कण्टकाकीर्ण जीवन को सरल और मधुर बनाकर जीवन में पुष्पों की वर्षा की। अपने जीवन से हताश और निराश अनेक साधनहीन असहाय लोगों ने आप से प्रेरणा और स्फूर्ति प्राप्त कर पुनर्जीवन प्राप्त किया। आपके उपदेश की एक विशेषता यह थी कि वह वर्ग विशेष के लिए न होकर जन-सामान्य के लिए था। गुरुदेव एक महामना थे, उनका व्यक्तित्व अनोखा, प्रखर और कतिपय विशेषताओं से युक्त था। उनके विचार उन्नत और प्रगतिशील थे। विचारों की उच्चता, आचरण की शुद्धता, जीवन की सरलता और सादगी ने आपके व्यक्तित्व को प्रखर और बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न बनाया। उनका हृदय इतना विशाल था कि विश्व के प्राणिमात्र के प्रति असीम करुणा का निवास उनके हृदय में विद्यमान था। यह एक वस्तुस्थिति है कि जिन महापुरुषों के विशाल हृदय में विद्यमान करुणा "सब" से ऊपर उठकर "पर" तक पहुँच जाती है उसका जीवन लक्ष्य भी अधिक व्यापक एवं उन्नत हो जाता है । उसकी करुगा समाज और देश के सीमा-बन्धन को लांघ कर विश्व के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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