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________________ HARTH :५: एक शाश्वत धर्म दिवाकर श्री जैन दिवाकर-स्मृति-बान्थ । पर विश्वास न हो, वह दूसरों का विश्वास भी अजित नहीं कर पाता । उन में दृढ़ आत्मविश्वास था तभी तो उनकी वाणी और व्यक्तित्व में इतना आकर्षण था और जादू का-सा प्रभाव था। विरोध को वे विनोद समझते थे। उनकी दृढ़ता से ही प्रभावित होकर उनके विरोधी भी समर्थक हो जाते थे। उनके निर्भीक और मधर शब्दों को सुनकर उनके प्रति नतमस्तक हो जाते थे। मानव हृदय के कुशल पारखो आपका लौकिक अनुभव भी बहुत विशाल था। ५६ वर्ष के दीर्घ संयमी जीवन में वे अनेक और विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों के सम्पर्क में आये। अपने इस विशाल अनुभव के आधार पर उन्हें मानव के हृदय को परखने की अद्भुत क्षमता प्राप्त हो गई थी। उन्होंने चोरों, डाकुओं, दुर्दान्त हत्यारों और वेश्याओं को भी प्रतिज्ञाएं दिलवाई। कुछ लोगों ने उस समय उनके त्याग पर विश्वास नहीं किया, किन्तु आपका विश्वास कभी गलत नहीं हुआ। उन लोगों ने बड़ी निष्ठा से प्रतिज्ञाओंनियमों का पालन किया। आपका विश्वास था कि अनेक बार मनुष्य परिस्थितियों और परम्पराओं से विवश होकर भी दुराचार में प्रवृत्त होता है। यदि उसकी सुप्त शुभ प्रवृत्तियों को जगा दिया जाय तो वह स्वयं ही सदाचार की ओर चल पड़ेगा । यही उन्होंने किया और उसमें सदा सफलता पाई। महान् सर्जक उत्तम मानव जीवन के सर्जक होने के साथ-साथ जैन दिवाकरजी महाराज उत्कृष्ट साहित्य के रचयिता भी थे। इस क्षेत्र में भी उनकी प्रतिमा बहुमुखी थी। उन्होंने गद्य और पद्य दोनों लिखे । लोक गीत, भजन आदि के साथ-साथ उनकी प्रतिभा से जीवन-चरित्र तथा विवेचनयुक्त ग्रन्थ भी निःसृत हुए। इनकी ३० पद्य रचनाओं में १६ जीवन चरित्र हैं और ११ भजन संग्रह हैं। इन्हें पढ़ते हुए होठ थिरकने लगते हैं, मन-मयूर नाचने लगता है और पाठक भाव-विभोर हो जाता है। इनकी रचनाओं में लोक-गीतों की मधुरता और रसमयता है तो गजलों के गुलदस्ते भी हैं । _ 'भगवान महावीर का आदर्श जीवन', 'जम्बूकुमार', और 'पार्श्वनाथ (चरित्र)' आदि आपकी गद्य-रचनाएँ हैं। इनमें अनेक प्रेरक प्रसंग भरे पड़े हैं। जिस प्रकार श्रीकृष्ण ने समस्त वेद-शास्त्रों का दोहन कर गीता का उपदेश दिया उसी प्रकार आपने समस्त जैन आगम साहित्य का मंथन कर 'निर्गन्य प्रवचन नाम से महावीर वाणी का संकलन किया। जिस प्रकार गीता योगेश्वर श्रीकृष्ण की कीर्ति का आध्यात्मिक आधारस्तम्भ है उसी प्रकार निर्ग्रन्थ प्रवचन आपश्री की वह अमर कृति है, जो युग-युगों तक प्रकाश-स्तम्भ बनकर जन-जन का मार्ग-दर्शन करती रहेगी। इसके अठारह अध्यायों में जैन आगमों के सभी विषय संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित रूप में समाहित कर लिये गए हैं। यह आपके गूढ़ और तलस्पर्शी अध्ययन का परिचायक है। इस ग्रन्थ में संकलित रत्नों का बहुरंगी प्रकाश पाठक के अतहृदय को जाग्रत कर उसके ज्ञानचक्षुओं को खोल देता है और कल्याण पथ प्रशस्त करता है ।। महान् और विराट् व्यक्तित्व जैन दिवाकरजी महाराज का व्यक्तित्व विशाल और विराट था । उनका व्यक्तित्व इन्द्रधनुषी था। वक्तृत्व, कवित्व, प्रभावकत्व, कारुण्य, लोकहित, श्रमणत्व और उच्चकोटि की तपोमय साधना के अनेक मनोरम रंगों का समागम हुआ था। उनके व्यक्तित्व में। वे विशिष्ट साधक थे। उन्होंने साधना की उन असीम ऊंचाइयों को छू लिया था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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