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________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ सामाजिक समता के स्वप्नदृष्टा जगदवल्लभ श्री जैन दिवाकर जी Jain Education International व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणें : ३२६ : रत्नगर्भा वसुन्धरा के अनमोल रत्नों में जैन दिवाकर प्रसिद्धवक्ता पं० मुनि श्री चौथमलजी महाराज साहब का महत्त्वपूर्ण स्थान है । वैचारिक क्रान्ति के सूत्रधार, महान् उदबोधक, दिव्य विभूति जैन दिवाकरजी महाराज ने वर्षों पूर्व समाज को वैविध्यपूर्ण दीवारें तोड़ने का उद्घोष किया । बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी दिवाकरजी महाराज ने दिवाकरवत् अपनी ज्ञानरश्मियाँ जन-जन को सुलभ कीं तथा अपना नाम (उपाधि) सार्थक किया । सीमित दायरों से दूर रहकर इस ज्योतिपुंज ने अपने संयम, साधना व ज्ञान की त्रिवेणी प्रवाहित की जिससे न केवल अज्ञानान्धकार दूर हुआ वरन् लक्षाधिक लोगों की जीवन- दिशा ही बदल गई । जैन दिवाकरजी महाराज यद्यपि जैन सम्प्रदाय से ( स्थानकवासी परम्परा) जुड़े हुए थे, पर वे इससे बंधे नहीं | वे तो प्रकाशस्तम्भ थे, जहाँ वर्ण, वर्ग, जाति, रूप आदि में विभक्त समाज उनसे प्रेरणा पाकर नवजीवन पा सके । कथनी और करनी का भेद दूर कर आपने अपेक्षाकृत कमजोर उपेक्षित व शोषित वर्ग को गरिमा प्रदान की । उनके प्रवचनों में अभूतपूर्व समभाव दृष्टिगोचर होता था क्योंकि वहाँ राजा व रंक, निरक्षर व साक्षर, हरिजन व श्रेष्ठि जब मन्त्रमुग्ध होकर प्रवचन श्रवण करते थे । जिन्हें हम पतित, अछूत व शूद्र मानते हैं उन्हें भी वे बड़ी आत्मीयता से जीवन उत्थान का मार्ग बतलाते थे । * उदय नागोरी, बी० ए०, जे० सि० प्रभाकर मानव धर्म दिवाकरजी महाराज की दृष्टि में मनुष्य को मनुष्य रूप में प्रतिष्ठित करना ही धर्म है । उनका संकल्प था कि सच्चे मानव के भीतर छिपे असंस्कार, क्रूरता, कदाचार व कटुता को अनावृत्त कर दिया जाय । जैन वही हो सकता है जो सच्चा मानव है । यही मानवधर्म है । जैनेतर तत्त्वों व सिद्धान्तों के मर्मज्ञ विद्वान् व इन्द्रधनुषी भाषाओं के ज्ञाता मुनिश्री चौथमल जी महाराज ने युगानुकूल विचार ही नहीं दिए, ५५ वर्षावासों की सुदीर्घ अवधि में व्यावहारिकनैतिक विषयों पर हजारों गवेषणापूर्ण प्रवचन दिए । जब देश में राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक चेतना का दौर था, दिवाकरजी महाराज ने भी सुप्त समाज को जाग्रत किया और मानवीय दृष्टि प्रदान की। उन्होंने समग्र मानव समाज के साथ समानता व भ्रातृत्व का भाव रखने का सन्देश दिया । For Private & Personal Use Only धार्मिक उदारता जैन दिवाकरजी महाराज ने कभी किसी धर्म का खण्डन नहीं किया । इसी सहिष्णुता के कारण उनके व्याख्यानों में हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, आर्यसमाजी समभावपूर्वक आनन्द लाभ करते थे । सच्चे धर्म का आदर्श बताते हुए आपने समता समाज का क्रान्तदर्शन किया www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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