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________________ श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ । व्यक्तित्व की बहरंगी किरणें : २६४: आपके प्रवचनों से कितने ही शासकों, सेठ-साहूकारों एवं नेताओं आदि ने सुरा-सन्दरी, शिकार, मांसाहार, फूट, कुरुढ़ियां आदि का त्याग किया । वहाँ कितने ही चमारों, मोचियों, हरिजनों, गिरिजनों, खटीकों वेश्याओं, चोरों आदि ने अपने दूषित जीवन को छोड़कर सन्मार्ग ग्रहण किया। हजारों लोगों ने फूट और वैमनस्य का कपथ छोड़ कर प्रेम और ऐक्य का सन्मार्ग अपनाया। समाज-सधार के आपके उपदेशों को हजारों लोगों ने क्रियान्वित कर दिखाया। कितने ही शराबियों ने शराब छोड़ी, कई मांसाहारियों ने मांसाहार छोड़ा, कई हिंसकों ने जीववध का त्याग किया, कई चोरों जुआरियों, बदमाशों या वेश्याओं ने अपने-अपने दुर्व्यसनों को तिलांजलि दी और सात्त्विक सन्मार्ग अपनाया । आपके प्रवचनों से कई कुमार्गगामी, पापी और पतित-आत्माओं की जीवन दिशा बदली। कहाँ तक गिनाएँ आपके जीवन में समाज-सधार के लिए एक से एक बढकर हजारों उपलब्धियाँ थीं। ऐसे समाज-सुधार के अग्रदूत को कोटि-कोटि कण्ठों से धन्यवाद और लक्ष-लक्ष प्रणाम ! G/ बदनामी मत ले! (तर्ज-पनजी मूडे बोल) मती लीजे रे- २, बदनामी कितनो जीणो प्राणी रे ॥टेर।। ली बदनामी राजा रावण, हरी राम की राणी रे । स्वारथ भी कुझ हुवा नहीं, गई राजधानी रे ॥१॥ दियो पींजरे बापने रे, कंश अनीति ठानी रे। विरोध करीने मर्यो हरि से, हुई उसी की हानी रे ॥२॥ ली बदनामी कौरवाँ ने, नहीं बात हरि की मानी रे। पांडवों की जीत हुई, महाभारत बखानी रे ॥३॥ ली बदनामी बादशाह ने, गढ़ चित्तौड़ पर आनी रे। हाथ न आई पदमणी, गई नाम निशानी रे ॥४॥ वासन तो विरलाय जावे, वासना रह जानी रे। तज घुमराई लीजे भलाई, या सुखदानीरे ॥५॥ धर्म ध्यान से शोभा होवे, सुधरे नर जिन्दगानी रे । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, धन जिनवानीरे ॥६॥ -जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज ----0--0--0--0--0--0-0 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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