SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २४० : जिन्होंने जनों के हृदय में मतभेद के कारण उमड़ते हुए तथा भड़कते हुए क्रोध को, अग्नि को इन्द्र की भाँति शान्त कर जगत में वन्दनीयता पाई और सभी सम्प्रदायों से आदर प्राप्त किया और सुवर्ण हीरे की भांति जड़कर अतुल शोभा पायी वह श्री चौथमलजी म० जनमानस में जीवित रहें ॥३॥ जिस प्रकार शिवजी ने डमरू बजाकर पाणिनि मुनि को प्रबुद्ध किया ठीक उसी प्रकार श्रावकों को श्री जैन दिवाकरजी ने भी अपने उपदेशों से जागृत किया । अपने सद्गुरु श्री हीरालालजी महाराज से सद्बोध प्राप्त कर आत्मद्वषी हाथी रूपी मद को दूर करने के लिए अहिंसा महाव्रत स्वयं पालन करते हुए सर्वत्र अनुप्राणित किया। श्री जैन दिवाकरजी ने श्रीमती केसर देवी और श्री गङ्गारामजी से जन्म प्राप्त कर तथा अपने गुरुदेव से आशीर्वाद पाकर श्री श्वेताम्बर जैनसंघ के प्रमुख संचालक बने और आत्मज्ञान के प्रचार और प्रसारार्थ अति सुन्दर साहित्य का निर्माण किया, जिससे सङ्घ को अति सुदृढ़ बनाया ॥४॥५॥ उन्होंने अपने उदात्त और उदार अध्यात्म-ज्ञान के द्वारा माननीय नेता बनकर जैनागम को ऐसा मुखरित किया, जिससे कई सज्जन अपने रागद्वेष को सदा के लिए तिलाञ्जलि देकर आत्मानन्द विभोर हो उठे ॥६।। उनके देवोपम यश को सुनकर देवलोक से देवता भी मनुष्य जैसा कपट वेष धारण कर अपनी आँखों के विवाद को मिटाने के लिए पृथ्वी पर आये और उनके दर्शन कर बहुत ही आनन्द लाभ किया ॥७॥८।। उन्होंने अनन्त जन्मों से आ रहे जीवों को कैवल्य सुख की उपलब्धि का साधन उपलब्ध कराने की इच्छा से ही अपने अट्ठारहवें वर्ष की आयु में ही दीक्षा ग्रहण कर भारतराष्ट्र में ५५ वर्षों तक चन्द्रवत प्रकाश करते हए मीठे-मीठे वचनों द्वारा सन्मार्ग प्रदर्शित किया ।।।। श्री जैन दिवाकरजी महाराज की कीर्ति सातों समुद्रों और सातों आसमानों को पार कर चन्द्रमा की भांति चमक रही है । उनका सुगन्धिमय सच्चरित्र गुलाब और मोगरे के पुष्पों की भांति भंवरे रूपी श्रावकों के झण्डों को आकर्षित करने में कुशल है ॥१०॥ गोपीकृष्ण द्वारा रचित इन श्लोकसुमनों को गले में फूलों के हार की भाँति जो पहनेगा उसका मन मस्त हो जायगा तथा सत्सङ्गति का व्यसनी बनकर समस्त शुभकार्य करता हुआ कुसङ्ग का परित्याग कर स्वयं दिवाकर की भाँति चमकने लग जायगा ॥११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy