SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ || श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २१८ : जय बोलो जैन दिवाकर की श्री केवल मुनि (तर्ज-जय बोलो महावीर स्वामी की) जय बोलो जैन दिवाकर की, शान्ति समता के सागर की ॥टेर।। माता केशर के नन्दन हैं, श्री गंगाराम कुल चन्दन हैं। नीमच के नाम उजागर की ॥१॥ फूलों की सेज को दिया त्याग, जम्बू स्वामी जैसा वैराग । दीक्षा-धारी गुण आगर की ॥२॥ कई जीवन बने शुद्ध निर्मल, नाली भी बन गई गंगा जल। -से अमृत निर्झर की ||३।। बाजार-महल और पर्ण कुटी, जिनकी वाणी से गूंज उठी। उस वाणी के जादूगर की." ॥४।। शदियों से संत ऐसे आते, जो सोया जगत जगा जाते। जय करुणानिधि करुणा कर की..." ||५|| सम्प्रदायों के घेरे तोड़े, शदियों से बिछुड़े मन जोड़े। गुरु चौथमल जी संगम कर की... ||६|| जय जय जिन-शासन के सपूत, जय संघ ऐक्य के अग्रदूत । जय 'केवल मुनि' ज्योतिर्धर की ॥७॥ जैन जग के दिवाकर की साध्वी श्री चन्दना 'कीति' (तर्ज—मेरा जीवन कोरा कागज" ) जैन जग के दिवाकर की जय बुलाइये। भक्ति के दीपक हृदय में जगमगाइये..." धन्य जननी, धन्य नगरी, धन्य है वह वंश । कितना सुन्दर,कितना मोहक, खिला वह अवतन्श ॥ छा गई ऽऽ-२ खुशियाँ, वो खुशियाँ अब भी लाइये........ माँ की ममता तोड़ी छोड़ा, पत्नि का भी प्यार । मुक्ति-पथ के बने राही, तज दिया संसार ।। नाम प्यारा-प्यारा चौथमलजी गुन गुनाइये........" जगत्वल्लभ, प्रसिद्धवक्ता, गुणों के आगार । बहुश्रुत, मुनिश्रेष्ठ, जन-जन के हृदय के हार ॥ आराध्य जन-जन के उन्हें, दिल में बिठाइये...... अय दयालु ! अय कृपालु ! विश्व की ए शान ! आज तेरे दर्शनों को 'कमला' व्याकुल प्राण ।। द्वार आई 'चन्दना' भव से तिराइये...... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy