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________________ | श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २१६ : स्वर्गवास के अवसर पर व्यक्त, पर जो आज भी ताजी है कुछ श्रद्धांजलियाँ (१) श्री जैन दिवाकरजी के अवसान से गुरुकुल परिवार में सन्नाटा-सा छा गया। मुझे वज्रपातसा दुःख हुआ। संघ ऐक्य के युग में यह असामयिक वियोग से स्थानकवासी जैन की ही नहीं, समस्त जैन समाज की अमिट क्षति हुई। ऐक्य सांकल की कड़ी टूटी। दयाधर्म और उदार-भाव के अद्वितीय उपदेशक की जनसाधारण को खोट पड़ गयी । कुछ समझ में नहीं आता, मगज अव्यवस्थितसा हो रहा है । दिवंगत महान् आत्मा की शान्तिकामना पूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। -धीरजलाल के० तुरखिया जैन दिवाकर पण्डित मुनि श्री चौथमलजी महाराज के स्वर्गवास के समाचार जानकर गहरा शोक हआ है। जैन दिवाकरजी की कमी से जैन समाज में जो हानि हई है उसकी पूर्ति निकट भविष्य में नहीं हो सकेगी। संघ ऐक्य योजना के प्रति उनकी हार्दिक लगन और कान्फन्स के साथ उनका अपूर्व सहयोग प्रशंसनीय था। काफेन्स की 'संघ ऐक्य योजना' की प्रगति में इनका बहुत बड़ा साथ था। उनकी वाणी में ऐसा आकर्षण था कि आम जनता जैनेतर समाज भी उनकी तरफ बरबस आकर्षित हो जाता था। अहिंसा के प्रचार में उनका जो हिस्सा रहा वह जैन समाज के इतिहास में अमर रहेगा । कई राजा-महाराजाओं को उन्होंने अहिंसक बनाया था और मद्य-मांसादि का त्याग कराया था। संघ ऐक्य के समय में जैन दिवाकरजी के अवसान से कान्फ्रेन्स की गहरी क्षति हुई है। शासनदेव उनकी आत्मा को शान्ति दें और चतुर्विध संघ उनकी संघ ऐक्य की भावना पूर्ण करे यही कामना है । -जैन प्रकाश -खीमचन्द्र वोरा (बम्बई) मानद मन्त्री श्वे० स्था० जैन कान्फ्रेंस जैन दिवाकर जी महाराज के निधन के दुःखद समाचार सने, अत्यन्त दुःख हुआ जैन शासन में एक चमकता सितारा अस्त हो गया, जिसकी पूर्ति अलभ्य है । हजारों लोग इस समाचार को दुःख से सुनेंगे, किन्तु परमात्मा महावीर के वचनानुसार बरदास्त के सिवा कोई चारा नहीं। उस सौम्यमूर्ति ने अपने अन्तिम निकट समय में त्रिदल सम्मेलन में एक अग्रगण्य का कर्तव्य अदा कर जैन संघ पर स्मरणीय उपकार किया है। -श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैनाचार्य श्री आनन्दसागर सूरीजी महाराज, मंडाला (राजस्थान) स्थानकवासी जैन साधुओं में जो कतिपय प्रतिभाशाली मुनिराज हैं, उनमें से एक तेजस्वी प्रतिभाशाली और विद्वान् मुनिराज प्रसिद्ध वक्ता पं० मुनिश्री चौथमलजी महाराज का ता० १७-१२-५० को कोटा में अवसान हो जाने के समाचार देते हुए अत्यन्त दुःख हो रहा है। मुनिश्री के अवसान से चतुर्विध संघ को गहरी क्षति हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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