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________________ || श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ । श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २१० : शत-शत प्रणाम -श्री उदयचन्दजी महाराज 'जैन सिद्धान्ताचार्य' (रतलाम) श्री जैन दिवाकर जी के चरणों में, शत-शत प्रणाम, शत-शत प्रणाम । इस शुभ शताब्दी के अवसर पर, गुरुवर को मेरा प्रणाम शत-शत प्रणाम । कलियुग के मोह मलिन तम में, जनता जब भ्रांत विमूढ़ रही। तब दिव्य ज्योति का दे प्रकाश, कर दिया नये युग का विकाश ।।१।। नीमच नगरी में जन्म लिया, जननी थी केसर कीतिमती।। श्री गंगाराम थे पुण्य जनक, परिवार हुआ सब धन्य-धन्य ॥२॥ जब पूर्व जन्म के पुण्य उदय, अष्टादश पापों का होता क्षय । तब हीरालाल गुरुदेव मिले, दीक्षित होकर हो गये निहाल ।।३।। जैनागमों का अध्ययन किया, शारदा माँ का सूप्रसाद मिला। व्याख्यान दान उपदेश दिया, जग में निज महिमा सुमन खिला ॥४॥ आध्यात्मवाद का कर प्रचार, सत् शिक्षा का करके प्रसार । तब जैन ज्योति का कर विकास, निज नाम दिवाकर का प्रचार ॥५॥ राजा-महाराजा और रंक, सब जनता को उपदेश दिया। धर्म-परायण शिक्षा देकर, सबके हिय में स्थान किया ॥६॥ जगह-जगह विचरण करके, निवेद मार्ग का कर प्रचार । संसार ताप का शमन किया, अमत का निर्झर बहा दिया ॥७॥ गुरुवर्य आपके चरणों में, नत मस्तक हो रहे आज । कर पुण्य 'उदय' सब पर भव के, कृत-कृत हुए सब धन्य आज ।।८।। अद्भुत योगी ___-श्री मगन मुनि 'रसिक' अद्भुत योगी जैन दिवाकर, भारत के महिपालों को, जगमग जग में चमके थे। अहिंसा का पाठ पढ़ाया था। विरल विभूति जिनशासन में, जो भूल गये थे मानवता, प्यारे अनुपम दमके थे ।। सन्मार्ग उन्हें दिखलाया था ।। जन-जन के थे वल्लभकारी, गाँव-गाँव और नगर-नगर में महा महिम गुण वारे थे। उपदेशामृत बरसाया था। हृदयस्पर्शी ज्ञान अनूठा, शुष्क हो गया था जनमानस, श्रमण-श्रेष्ठ सितारे थे। पल्लवित सरस बनाया था । आज देश के सभी भक्त-गण, गीत तुम्हारे गाते हैं। अनुनय विनय-श्रद्धा-भक्ति युत, करबद्ध शीश झुकाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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