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________________ : २०१: श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-मरा प्रणाम श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ महापुरुष की जन्म जयन्ति, आती लाती नव सन्देश । दूज चाँद ज्यू बढ़े निरन्तर, देती पावन यह उपदेश ।। भव्य भावना लिये भक्तगण, यश-गण-गाथा गाते हैं। ज्ञानी-मनि-गण गाने वाले, भव-सागर तर जाते हैं। जैन दिवाकर जगवल्लभ श्री चौथमल जी हुए महान । पुण्यवंत गुणवंत मुनीश्वर, जान रहा है सकल जहान ।। कलाकार जीवन के सच्चे, कांति-शांति के पुञ्ज परम। ज्ञान-ध्यान की विविध विधा से, पावन जीवन उच्च नरम ।। प्रवहमान गंगा का निर्मल, नीर सभी का उपकारी । प्रवचन की निर्मल धारा से, तरे अनेकों संसारी ।। मोह-मान से मस्त बने जो, उनको मार्ग दिखाते थे। मुक्ति-महल पहुँचाने वाला, उत्तम श्रुत सिखलाते थे ।। आत्म-ज्ञान के अनुपम साधक, चमके जैसे नभ में चंद । भारतीय जन-जन के मन में, बसे सुमन में यथा सुगंध ।। राजा राणा रंक सभी जन, चरणों में पाते आनन्द । वाणी भूषण, कुशल प्रवक्ता, सुनकर लेते गुण मकरन्द ।। जन्म शती के पुण्य पलों में, "मुनि जिनेन्द्र" गुण गाता है। महापुरुष के चरण कमल में, सविनय शीश झुकाता है।। जीवन के सच्चे कलाकार 4 श्री जिनेन्द्रमुनि 'काव्यतीर्थ श्री सुभाषमुनि 'सुमन' दिव्य दिवाकर जैन जगत के, ज्योतिर्धर थे सन्त महान् । मानवता के स्वर संधायक, करते थे निज-पर कल्याण ।। आये थे आलोक लिए वे. आलोकित जन को करने । सत्य-अहिंसा-करुणा, मैत्री का पावन अमृत भरने । दिव्य भव्य व्यक्तित्व सुहाना, जन-मन खूब लुभाया था। गए जिधर भी उधर खूब ही, प्रेम पराग लुटाया था ।। लोकनायक सन्तप्रवर थे, जग-वल्लभ जय-जय गुरुदेव । जय-जय वाणी के जादूगर, जैन दिवाकर जय गुरुदेव ॥ उद्धारक थे पतित-जनों के, आश्रय-दाता थे गुरुदेव । सब जीवों पर करुणा निर्झर, झर-झर बहता था नितमेव ।। जग जीवों के प्रति मैत्री हो, यह सन्देश तुम्हारा प्यारा था। विरल-विभूति विश्व प्रभाकर, सच्चा श्रेष्ठ सहारा था। महक उठा था एक सुमन वह, आर्यावर्त की धरती पर । कुसुमाकर सौरभ लुटा गया, स्वर्ग-लोक सी अवनी पर । जय-जय जीवन प्यारे गुरुवर, जय-जय सुर-गण भी करते। महायोगी युगश्रेष्ठ के, पाद-पद्म में मस्तक धरते ।। जय-जय गुरुवर चौथमलजी, जय समता गुण के धारी। चरणों में शत्-शत् वन्दन, स्वीकार करो हे ! अवतारी ॥ MIII IIII11 lifilm IT IIIIII HLILI Int UN HIMIT Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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