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:१११: श्रद्धा का अयं : भक्ति-भरा प्रणाम
। श्री छैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
धण्णो य सो दिवायरो
* श्री उमेश मुनि 'अणु' धण्णा नीमचभूमी सा,
केसर - जणणी वीरा, धण्णं तं उत्तमं कुलं ।
जाए स-प्पिय-णंदणो। धण्णो, कालोय सो जमि,
ठाविओ मोक्ख-मग्गंमि, जाओ मुणी दिवायरो ॥१॥
चोथमल्लो मुणी वरो ॥२॥ जिण - सासण - मगणे,
मंजुला सरला वाणी, हुकुम - गच्छ - पंगणे।
जण - मण - विआसगा। उग्गओ हारओ जड्डं,
जस्साहिणंदणिज्जा ऽऽसी, भत्त - कुल - दिवायरो ॥३॥
धण्णोय सो दिवायरो॥४॥ जण - भासाइ सत्तत्तं,
सासण - रसिआ जेण, गीयं हिअय - हारियं ।
कारिआ बहुणो जणा। कल्लाण - पेरगं जेण,
जणाण वल्लहो खाओ, धण्णा य सो दिवायरो ।।५।।
धण्णो य सो दिवायरो ॥६॥ पयावइव्व पत्ताई,
कया कया सुकालम्मि, धीरो सीसे घडीअ जो।
णिफ्फज्जइ जणप्पिओ। पहावगो सुधम्मस्स,
वाणी-पहू जई सेट्ठो; धण्णो य सो दिवायरो ॥७॥
साहू धम्म - धुरन्धरो॥८॥ वरिसाण सयं एयं, जम्मस्स जस्स मंगलं । कल्लाणं सरणं तस्स, चेइअं - अणुणा कयं ॥६।।
नयनों
जैन जगत के पावन संत महान् थे। जन-जन के प्यारे थे, नयनों के तारे थे ।। गंगाराम तात थे, केशरबाई मात केकुल उजियारे थे, नयनों के तारे थे ।।१।। तज जग के जंजाल वे, गुरुवर हीरालाल से महाव्रत धारे थे, नयनों के तारे थे ।।२।। सब शास्त्रों का सार ले,बनकर गुण भंडार वे, अघ हरनारे थे, नयनों के तारे थे ।।३।। 'मूल' दया की खान थे, प्रेम के वरदान थे। कप्ट निवारे थे, नयनों के तारे थे ।।४।।
* श्री मूलमुनि जी
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