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________________ || श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ वाणी के देवता * अशोक मुनि साहित्यरत्न परम श्रद्धय गुरुदेव जैन दिवाकर जी महाराज वाणी के जादूगर थे। उनकी वाणी श्रोताओं पर अजब प्रभाव छोड़ जाती थी, उनके स्वयं के अनुभव जब उनकी वाणी के द्वारा मुखर उठते थे तो श्रोताओं का मानस झकझोर देते थे और जीवन सुधारने को तत्पर कर देते थे। जिनेन्द्र देव की वाणी जब बरसती थी तो वह खाली नहीं जाती थी, उस वाणी को सुनकर कोई न कोई प्राणी देशव्रती या सर्वव्रती बनता ही था। जिनेन्द्रदेव के दर्शन हमने नहीं किये, उनके श्रीमुख से वाणी नहीं सुनी किन्तु गुरुदेव के दर्शन किये हैं, उनकी वाणी सुनने का महिनों तक स्वर्णिम अवसर मिला है। उनकी वाणी से कई लोगों का हृदय बदला है, और अपने पापों का पश्चात्ताप करते देखा है। लोगों को करुणाद्र हो आँखों से सावन-भादों बरसाते देखा है, हृदय प्रक्षालित करते देखा है। पापियों को जीवन सुधारते देखा है। वारांगनाओं को सन्नारी बनते देखा है। शिकारियों को शस्त्र फेंकते देखा है। मद्यपायी को बोतलें छोड़ते देखा है, बीड़ी-सिगरेट वालों को बण्डल और पेकेट फेंकते देखा है । सम्पन्न श्रेष्ठियों को वैरागी बनते देखा है। अधार्मिकों को धर्मशीतल छाया में आते देखा है । नास्तिकों को आस्तिक बनते देखा है। वाणी के प्रभाव के कतिपय : चमत्कारी प्रसंग इन्दौर का प्रसंग : संवत् १९८० की साल का चातुर्मास गुरुदेव का इन्दौर था, इन्दौर के इतवारी बाजार में सेठ हुक्मीचंदजी के रंग महल में गुरुदेव चातुर्मासस्थ विराजमान थे, व्याख्यान भी वहीं होते थे। इन्दौर की जनता में व्याख्यानों की खूब चर्चा थी और जनता भादों की घटा के समान उमड़ती थी। व्याख्यानोपरांत जनता जब स्थान से निकलती तो मार्ग ऐसा अवरुद्ध हो जाता कि वाहन रुक जाते थे। व्याख्यान की महिमा सेठ हुक्मीचन्दजी तक भी पहुँची, सेठजी स्वयं जैन तत्वों के जानकार थे तथा दश लक्षणी पर्व पर प्रवचन भी करते । गुरुदेव का व्याख्यान सुनने एक बार सेठ जी आतुर बने और समय निकाल कर गुरुदेव के व्याख्यान में आये। व्याख्यान धारा-प्रवाह चल रहा था। सेठजी भी उस वाणी-प्रवाह में अवगाहन करने लगे और हृदय पर उस वाणी का ऐसा असर हुआ कि उस वर्ष के दस-लक्षणी पर्व के प्रवचनों में कहने लगे कि प्रवचन सुनना हो तो चौथमलजी महाराज का सुनना चाहिए। उनका मैंने एक प्रवचन सुना है और एक ने ही मेरे हृदय पर गहरा असर किया है । अगर उनके दो-तीन प्रवचन और सुन लूं तो सम्भव है मुझे संसार छोड़ कर संयम-पथ पर लगना पड़े, उनकी वाणी में ऐसा ही प्रभाव है। जोधपुर राजस्थान में जैन समाज का बड़ा क्षेत्र है । मध्य प्रदेश और राजस्थान में इतना बड़ा जैन समुदाय अन्यत्र मिलना कठिन है । यों जोधपुर का जैन समाज भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों, उपसम्प्रदाय में बँटा हुआ है । गुरुदेव का संवत् १९८४ की साल का चातुर्मास जोधपुर था । जोधपुर में अन्य जैन-सम्प्रदायों के चातुर्मास भी थे, पर गुरुदेव के व्याख्यानों में जनता उमड़ पड़ती थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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